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17 फरवरी 1937: जब श्रमिकों की आवाज़ संसद तक पहुंची

आज से 88 साल पहले, 17 फरवरी 1937 को ब्रिटिश भारत में प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव हुए। इस ऐतिहासिक चुनाव में डॉ. भीमराव अंबेडकर की इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (ILP) ने मुंबई प्रांतीय परिषद की 175 सीटों में से 18पर चुनाव लड़ा।

ILP ने बड़ी जीत दर्ज करते हुए 14 सीटों पर विजय प्राप्त की, जिनमें से एक खुद डॉ. अंबेडकर की थी। इस जीत के साथ कई प्रमुख नेता विधानसभा पहुंचे, जिनमें भाऊसाहेब गडकरी, श्यामराव पारुलेकर, भाई अनंत चिटे और तीन अन्य उच्च जाति के हिंदू उम्मीदवार भी शामिल थे। साथ ही, ILP के दो उम्मीदवार ऊपरी सदन में भी निर्वाचित हुए।

इस चुनाव में ILP का चुनाव चिन्ह "मनुष्य" था, जो पार्टी के मानवतावादी और श्रमिक-समर्थक दृष्टिकोण को दर्शाता था।


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डॉ. अंबेडकर ने 15 अगस्त 1936 को इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की थी। ILP का उद्देश्य केवल संगठित मजदूरों के लिए ही नहीं, बल्कि असंगठित और शोषित श्रमिक वर्ग के लिए भी एक मज़बूत आवाज़ बनना था।

1937 में प्रकाशित पार्टी के कार्यक्रम में इसे ‘मज़दूर संगठन’ बताया गया, जिसका मकसद श्रमिक वर्ग की भलाई और उनके अधिकारों की रक्षा करना था। ILP ने राज्य के स्वामित्व और प्रबंधन का समर्थन किया, ताकि मज़दूरों का शोषण रोका जा सके और उन्हें न्याय मिले।

डॉ. अंबेडकर का यह कदम भारतीय राजनीति में एक नई सोच लेकर आया – एक ऐसी राजनीति, जो जाति, वर्ग और भेदभाव से ऊपर उठकर समाज के सबसे वंचित तबके की आवाज़ बनी।

मतदान – क्योंकि हर चुनाव एक बदलाव की शुरुआत है।

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