आज भाजपा जो भी ग़ज़ब ढ़ा रही है, उसकी सीख कांग्रेस ने दी है
- जितेंद्र चौरसिया
- Nov 14, 2020
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डेमोक्रेसी का नहीं डेमोक्राईसिस का डेमो -

भारत में डेमोक्रेसी नहीं डेमोक्राईसिस है। मध्यप्रदेश उपचुनाव में जो हुआ वो भारत के लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई गयी है। और ये तो आभि डेमो मात्र था! डेमोक्रेसी का नहीं डेमोक्राईसिस का डेमो
चुनाव कोई भी जीते सरकार उसी की बनेगी जिसके पास विधायकों के खरीदने के लिए रुपया होगा! विधायक खरीदो, स्तीफा दिलाओ, मंत्री बनाओ फिर टिकट देकर चुनाव में अवैध रुपयों से या सरकार के दबाव से वोट खरीदकर सत्ता में कब्जा कर लो! ऐसा नहीं है कि इसका पहला Demo भाजपा ने मध्यप्रदेश में किया है!
महाराष्ट्र 2019
अभी कुछ महीने पहले महाराष्ट्र सरकार का नाटकीय रंगमंच सभी लोगों ने देखा था कि चुनावी गठबन्धन भाजपा और शिवसेना का था सरकार कांग्रेस शिवसेना और पवार साहब की पावर राकांपा की बन गई ऐ अलग बात है कि राज्यपाल ने आधी रात को बिना विधायकों के समर्थन के भाजपा के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई और Demo"crisis" दिखा दी थी।
तमिलनाडु 1952
भारत की Demo"Crisis" का इतिहास देखिए पहले कांग्रेस द्वारा सत्ता का दुरुपयोग और बाद में भाजपा द्वारा कांग्रेस से भी दो कदम आगे निकलकर लोकतंत्र की हत्या का खेल साल डर साल।1952 में तमिलनाडु में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या – राज्य के संवैधानिक पद राज्यपाल का दुरुपयोग पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के समय से ही शुरु हो गया था। 1952 में मद्रास राज्य, जिसे अब तमिलनाडु कहा जाता है, के चुनाव में अधिक सीट जीतने वाले संयुक्त मोर्चे के गठबंधन को सरकार बनाने का राज्यपाल ने निमंत्रण नहीं दिया बल्कि कम सीट जीतने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता सी राजगोपालचारी को आमंत्रित कर दिया, जो उस समय विधानसभा के सदस्य भी नहीं थे।
केरल 1959
1959 में केरल में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या –भारत में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व में साल 1957 में चुनी गई। लेकिन राज्य में कथित मुक्ति संग्राम के बहाने तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1959 में इसे बर्खास्त कर दिया। यह हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री और आजादी के नायक जवाहर लाल नेहरू का कार्यकाल था। यह भारत की पहली क्षेत्रीय सरकार थी जहां कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।
हरियाणा 1982
1982 में हरियाणा में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या -हरियाणा में 36 साल पहले 21 से 23 मई 1982 तक कर्नाटक जैसा ही राजनीतिक घटनाक्रम हुआ था। लोकदल नेता चौधरी देवीलाल और भाजपा नेता डॉ. मंगल सेन चंडीगढ़ में हरियाणा के राज्यपाल जीडी तपासे से मिले और उन्हें 90 में से 46 विधायकों के हस्ताक्षर वाला समर्थन पत्र सरकार बनाने के लिए सौंपा। राज्यपाल ने विधायकों के हस्ताक्षर की सत्यता की जांच करने के लिए दोनों नेताओं को 24 मई तक इंतजार करने को कहा और 23 मई को ही 36 विधायकों वाली कांग्रेस के नेता चौधरी भजन लाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। राज्यपाल ने भजन लाल को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय भी दिया। इससे नाराज चौधरी देवीलाल और डॉ. मंगल सेन ने विधायकों के साथ चंडीगढ़ राजभवन में परेड भी की, मगर हरियाणा राजभवन में उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। तब भाजपा के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने इस संबंध में तत्कालीन राष्ट्रपति से विरोध भी जताया था। इन दोनों नेताओं ने तब आरोप लगाया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इशारे पर राज्यपाल ने बहुमत के गठबंधन को मौका नहीं दिया।
कश्मीर 1984
1984 में जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या –1984 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल बी.के. नेहरू ने केंद्र के दबाव के बावजूद फारूख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के खिलाफ रिपोर्ट भेजने से इनकार कर दिया। अंततः केंद्र की सरकार ने उनका तबादला गुजरात कर दिया और दूसरा राज्यपाल भेजकर मनमाफिक रिपोर्ट मंगवाई गई। राज्य सरकार को बर्खास्त किया गया।
आंध्रप्रदेश 1984
1984 में आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या- 1983 में आंध्र-प्रदेश में तेलगूदेशम के नेता एन टी रामा राव ने पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनायी थी। सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री एनटी रामाराव को अचानक हार्ट सर्जरी कराने के लिए अमेरिका जाना पड़ा, मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति से राज्य की सरकार को बर्खास्त करवा दिया। और तत्कालीन वित्तमंत्री एन भाष्कर राव को सरकार बनाने का राज्यपाल ने मौका दे दिया, लेकिन एन टी रामा राव ने स्वदेश वापसी के साथ ही स्थिति को एक बार फिर अपने पक्ष में कर लिया और मुख्यमंत्री बन गये।
उत्तरप्रदेश 1998
1998 में उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या- साल 1996 में यूपी में हुए विधानसभा चुनावों में भी कर्नाटक जैसे हालात सामने आए थे, जब किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था और 424 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 174 सीटें मिली थीं। हालांकि उस समय भाजपा ने अपने से कम 67 सीटों वाली बसपा के साथ मिलकर सरकार बना ली थी और मायावती मुख्यमंत्री बनी थी। इसी गठबंधन के तहत कल्याण सिंह ने भी मुख्यमंत्री पद के रूप में जिम्मेदारी संभाली। लेकिन एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत सन 1998 में 21-22 फरवरी की रात सूबे के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने अचानक कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दिया और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री की शपथ भी दिला दी। इसके विरोध में भाजपा हाईकोर्ट गई, कोर्ट ने राज्यपाल के इस कदम को अनुचित मानते हुए उनके आदेश पर रोक लगा दी। हालांकि इससे पहले ही जगदंबिका पाल का शपथ ग्रहण हो चुका था लेकिन कोर्ट ने उसे भी रद्द कर दिया।
झारखंड 2005
2005 में झारखंड में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या– वर्ष 2005 में झारखंड में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने कम सीटों पर जीत हासिल करने वाले शिबू सोरेन को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई। हालांकि शिबू सोरेन विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने में विफल रहे और नौ दिनों के बाद ही उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद एनडीए ने राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश किया और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से आखिरकार 13 मार्च, 2005 को अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार सत्ता में आई।
कर्नाटक 2009
2009 में कर्नाटक में कांग्रेस ने की लोकतंत्र की हत्या यूपीए-1 की सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हंसराज भारद्वाज को 25 जून, 2009 को मनमोहन सरकार ने कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किया। भारद्वाज ने कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया। राज्यपाल का कहना था कि येदियुरप्पा सरकार ने फर्जी तरीके से बहुमत हासिल किया है।
अरुणाचल प्रदेश 2003
अरुणाचल प्रदेश में -बीजेपी पहली बार बिना बहुमत के ही वर्ष 2003 में यहां सत्ता में आई थी. उसके बाद वर्ष 2016 से भी वह बिना बहुमत के सरकार में थी. वर्ष 2003 में पूर्व मुख्यमंत्री गेगांग अपांग, जो तब एक क्षेत्रीय पार्टी के इकलौते विधायक थे, उन्होंने सत्तारुढ़ कांग्रेस के ज्यादातर विधायकों को दलबदल के लिए तैयार कर लिया. अपांग बाद में बीजेपी में शामिल हो गए थे. लेकिन बीजेपी की यह सरकार महज आठ महीने ही चल सकी. उसके बाद अपांग समेत ज्यादातर विधायक कांग्रेस में लौट आए थे. वर्ष 2004 के विधानसभा में अपांग की अगुवाई में कांग्रेस को बहुमत मिला था. उस साल कांग्रेस को 34 सीटें मिली थीं और बीजेपी को नौ.
अरुणाचल प्रदेश 2016
राज्य विधानसभा का 2016 कार्यकाल तो बेहद उलटफेर वाला रहा है. पिछली बार कांग्रेस ने भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. लेकिन पार्टी के 43 विधायकों ने रातोंरात पाला बदल कर पीपीए का दामन थाम लिया था जिसका कुछ दिनों बाद ही बीजेपी में विलय हो गया था. नबाम टुकी के नेतृत्व में वर्ष 2014 में जीत कर सरकार बनाने वाली कांग्रेस सरकार को नेतृत्व के मुद्दे पर उभरे विवाद के बाद जनवरी 2016 में बर्खास्त कर दिया गया था. एक महीने के राष्ट्रपति शासन के बाद कालिखो पुल को बागी कांग्रेस सरकार का मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की वजह से राज्य में कांग्रेस की सरकार बहाल हो गई. उसी दौरान पुल की रहस्यमयी हालात में मौत हो गई. उसके बाद नबाम टुकी ने पेमा खांडू के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी. कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री बनने के बाद खांडू पहले पीपुल्स पार्टी आफ अरुणाचल नामक एक क्षेत्रीय पार्टी में शामिल हुए और दिसंबर, 2016 में बीजेपी में.
गोवा 2017
2017 में गोवा में भाजपा को जनता ने नकार दिया था और इकलौती सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर कांग्रेस को 17 सीटों के साथ चुना था भाजपा के पास 13 सीटें थीं कांग्रेस को सरकार बनाने का न्यौता ही नहीं मिला और भाजपा ने षड्यंत्र करके सरकार बना ली।
कर्नाटक 2018
2018 कर्नाटक चुनाव परिणामों पर दो दृष्टियों से गौर करने की आवश्यकता है| प्रथम जनबल, जहाँ अकेले कांग्रेस को भाजपा से लगभग सात लाख वोट ज्यादा मिले हैं; द्वितीय संख्याबल, जहाँ कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन को कुल 118 सीटें मिली है, जो भाजपा से 15 ज्यादा एवं पूर्ण बहुमत से 7 ज्यादा है| ऐसे में राजभवन का दुरुपयोग करते हुए भाजपा ने लोकतांत्रिक प्रणाली को ध्वस्त करने का कार्य किया| स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब पूर्ण बहुमत प्राप्त गठबंधन को सत्ता से दूर रखने का ऐसा कुचक्र रचा गया| धनबल, बाहुबल और संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग का लालच एवं भय दिखाकर बहुमत प्राप्त करने का षड़यंत्र रचा गया| इन सब सियासी चालबाजियों में असफल भाजपा ने राजभवन का रुख किया जहां उसे आशा अनुसार सफलता मिल गयी और लोकतंत्र की हत्या की पटकथा को अंजाम दिया गया| राजभवन ने भी अपने दायित्वों और संविधान की शपथ को नजरअंदाज करके माननीय न्यायालय के पूर्व फैसलों, संविधान के प्रावधानों को ताक पर रखने का कार्य किया है| यह समझने की आवश्यकता है कि आखिर किस भाईचारे/दबाव/डर/द्वेष से इस तरह का फैसला लिया गया है| अगर लोकतंत्र की हत्या के इस षड़यंत्र को नहीं समझा गया तो वो दिन दूर नहीं जब देश में तानाशाही शासन की स्थापना हो जाएगी|
लेखक, अमरपाटन विधानसभा, जिला सतना, संभाग रीवा , मध्यप्रदेश चुनाव लड़ चुके हैं। आप में चीन बाज़ार में भारतीय फ़ार्मा कम्पनी के मुख्य प्रबंधक के रूप में पदस्थ रहें हैं। राजनीति और सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर हैं।




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