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म्यामांर में लोकतंत्र फिर से खत्म

पड़ोसी देश म्यांमार में सैन्य तख्तापलट की कार्रवाई लोकतंत्र विरोधी है और अत्यंत चिंताजनक है। म्यांमार में 10 साल पहले ही सेना ने सत्ता का हस्तांतरण जनता की चुनी हुई सरकार को किया था।

Democracy ends again in Myanmar म्यामांर में लोकतंत्र फिर से खत्म matdaan

नोबेल पुरस्कार विजेता, म्यामांर के राष्ट्रपति आंग सान सू की गिरफ्तारी दुनिया के सभी लोकतंत्र समर्थकों के लिए बड़ी चुनौती है।आंग सान सू द्वारा अपने देश में लंबी लड़ाई अहिंसात्मक तरीके (गांधीवादी विचारधारा) से लड़कर तानाशाही शासन से मुक्ति दिलाई थी।



अंतरराष्ट्रीय मीडिया आंग सान सू ची को 'राष्ट्रमाता' कहती है‌।लेकिन सेना यहां खुद को 'राष्ट्रपिता' मानती है."


म्यामांर में साल 2008 में एक संवैधानिक संशोधन किया गया था।म्यांमार के संविधान के आधार पर सेना के पास 25 फ़ीसदी सीटों का आधिकार है। साथ ही तीन अहम मंत्रालय गृह, रक्षा और सीमाओं से जुड़े मामलों के मंत्रालय का अधिकार पूरी तरह से सेना के पास है।


म्यांमार के कार्यकारी राष्ट्रपति मीएन स्वे ने बयान दिया कि, "चुनाव आयोग 8 नवंबर को हुए आम चुनाव में वोटर लिस्ट की बड़ी गड़बड़ियों को ठीक करने में असफ़ल रहा है।" लेकिन कोई पुख्ता सबूत पेश नहीं कर पाए।


सोमवार को म्यांमार की संसद का पहला सत्र होना था लेकिन ऐसा हो नहीं सका।


तख्तापलट की ख़बर से म्यामांर में एक बार फिर डर और संशय का माहौल पैदा हो गया है। साल 2011 में ही म्यामांर में पांच दशकों से चले दमनकारी सैन्य शासन का अंत हुआ था।सोमवार तड़के ही आंग सान सू ची और अन्य राजनेताओं की गिरफ़्तारी ने एक बार फिर देश में डर के उस दौर को फिर से कायम कर दिया है जिससे म्यामांर एक बार बाहर हो चुका था।


नवंबर में हुए चुनाव में आंग सान सू ची की पार्टी एनएलडी को 80 फ़ीसदी वोट मिले। ये वोट आंग सान सू ची सरकार पर रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के लगने वाले आरोपों के बावजूद मिले।ऐसा माना जा रहा है कि सेना के परिवार के लोगों ने भी सेना समर्थित पार्टी को वोट नहीं दिया।और आंग सान सू को भारी बहुमत से जीत मिली।


संसद के पहले सत्र से कुछ घंटे पहले सू ची समेत कई राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। संचार व्यवस्थाओं को आंशिक रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया।


पूरे घटना में परदे के पीछे से सेना ने म्यांमार पर कड़ी पकड़ बना रखी थी।इसमें सबसे बड़ा कारण म्यांमार के संविधान का है जिसमें संसद की सभी सीटों का एक चौथाई हिस्सा सेना के हाथों में रहता ही है और देश के सबसे शक्तिशाली मंत्रालयों का नियंत्रित करने की गारंटी सेना को दे देता है।


म्यांमार में जनता द्वारा चुनी गई सरकार को हटाकर सैन्य शासन की स्थापना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है।इस कार्यवाही ने दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों की चिंता बढ़ाई है। म्यांमार की इस घटना में पर्दे के पीछे चीन द्वारा सेना के समर्थन से इन्कार नहीं किया जा सकता।यह दुनिया के लिए अत्यंत खतरे का संकेत हो सकता है।


म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली के लिए दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देश और अपने आप को सुपरपावर मानने वाले अमेरिका का क्या रुख होगा ऐ देखना अभी बाकी है।


आंग सान सू की जिंदगी पर खतरा बना हुआ है। पहली प्राथमिकता उनके जीवन की रक्षा और इसके पश्चात लोकतंत्र बहाली के प्रयास होने चाहिए।

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जितेन्द्र चौरसिया

 
 
 

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