वर्तमान परिद्रश्य क्या हैं लोकतंत्र को खतरे
- संजीव वैद्य

- Dec 3, 2020
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Updated: Dec 4, 2020

कोई राजनीतिक दल जब लम्बे समय सत्ता मे बना रहता है तो वह लोकतंत्र को खिलौने की तरह इस्तेमाल करने लगता है.बार बार प्राप्त होने वाले जनादेश को ईश्वर की मर्जी मानकर तानाशाही की और अग्रसर होने लगता है.भक्त प्रवृत्ति के चापलूसों की फौज उसके इर्द गिर्द एकत्रित होने लगती है.सम्पूर्ण व्यवस्था मदारी तंत्र मे रूपांतरित होने लगती है.कमोवश पूरी दुनिया मे इस प्रकार की दक्षिणपंथी ताकते लोकतंत्र पर हावी होती जा रही है.ब्राजील,हंगरी,पोलैंड,तुर्की,वेनेजुएला,फ्रांस आदि अनेक देशो मे ऐसी सरकारे स्थापित हो रही है.मेरा इशारा भारत की तरफ भी है.जनता को झूठे वादों द्वारा,झांसा देकर,धार्मिक,जातिगत,नस्लीय उन्माद फैलाकर,युद्ध मनोविज्ञान का सहारा लेकर आदि आदि अनेकानेक तरीको से ये सत्ता प्राप्त कर लेते है. इनका अगला लक्ष्य होता एकाधिकार स्थापित करना.जितनी संवेधानिक संस्थाए है उन्हें अपने नियंत्रण मे लेना,उनकी स्वायत्तता का गला घोटना.व्यवस्थापिका,कार्यपालिका,न्यायपालिका आदि सभी जगह अपनी विचारधारा के लोगो को स्थापित किया जाता है.समाचार पत्रों,टी.वी.चैनल्स को डरा-धमकाकर, लालच के द्वारा अपने प्रभाव मे लाया जाता है.सोशल मीडिया इनके नियंत्रण के बाहर है तो यहाँ भुगतान आधारित भक्तो की फौज तैनात की जाति है जो इशारा मिलते ही किसी पर भी टूट पड़ती है.अभद्र शब्दो के इस्तेमाल मे इन्हें महारत हासिल है
ऐसी सरकारे अक्सर जनहित के कार्य न करके एक वर्ग विशेष के हित मे या कहे तो उनके इशारो पर कार्य करती है.मार्क्सवादी साहित्य मे इन्हें बुर्जुआ कहा जाता है.आम जनता अर्थात सर्वहारा उपेक्षित होने लगता है.इस उपेक्षित होते सर्वहारा को बहलाने फुसलाने के लिए धर्म का सहारा लिया जाता है.धर्मरुपी अफीम को सूंघकर ये जनता भी अपने रंजो गम भूलकर इनकी भक्ति मे डूब जाती है.फिर भी कुछ समझदार किस्म के लोग इनकी चालो को अच्छे से समझते है.इनका खुलकर विरोध भी करते है.ऐसे समझदार किस्म के लोगो को सरकारी तंत्र के द्वारा निशाना बनाया जाता है.जर्मनी मे हिटलर के दौर मे गेस्टापो विरोधियो को ठिकाने लगाती थी.यहाँ भी इन्हें ठिकाने लगाने के लिए नए नए तरीके इस्तेमाल किये जाते है.इन्हें जनता की नजरो से गिराने के लिए नवीन किस्म की उपमाए प्रदान की जाति है,जैसे, सी.ए.ए./एन.आर.सी. का विरोध करने वाले एक धार्मिक समुदाय को आतंकवादी तक कहा गया.हाल ही काले कृषि कानून का विरोध कर वाले पंजाबी कृषको को खालिस्तानी का टैग लगा दिया गया.यदि कोई आदिवासी शासन की नीतिओ का विरोध करे तो नक्सली,कोई शहरी विरोध करे तो अर्बन नक्सली.
उक्त विश्लेषण किसी काल्पनिक कथा की प्रष्ठभूमि नहीं है.आज हमारा समाज/राष्ट्र इन खतरनाक परिस्थितियो से जूझ रहा है.संविधान खतरे मे है,सामाजिक संगठन खतरे मे है.मंदिर,मस्जिद,गाय,लव जिहाद,धारा 370,चीन-पाकिस्तान जैसे मुद्दों पर शासन को संचालित किया जा रहा है.तमाम स्वायत्त संवेधानिक संस्थाओ को नियंत्रित किया जा रहा है.शिक्षा,स्वास्थ्य जैसे तमाम जनहितकारी मुद्दे गौड़ होते जा रहे है.जनता के दिमाग मे साम्प्रदयिकता,जातिवाद,छद्म राष्ट्रवाद जैसा कचरा ठूसा जा रहा है.वास्तव मे आज महसूस हो रहा है राष्ट्र खतरे मे है,संविधान खतरे मे है,लोकतंत्र खतरे मे है.
आने वाले अंको मे ऐसे ही खतरों से आपको आगाह करता रहूँगा,क्योकी यहाँ तो वोटर ही रिपोर्टर है.
लेखक - संजीव वैद्य
संजीव वैद्य विगत 20 वर्षो से सिविल सेवा परीक्षाओ के वरिष्ठ मार्गदर्शक है. प्रतियोगिता परीक्षा सम्बन्धी पुस्तकों के प्रख्यात लेखक है. इसके साथ साथ सामाजिक व् राजनीतिक क्षेत्र मे भी विगत 10-11 वर्षो से सक्रिय है.आप उच्च कोटि के शिक्षक,लेखक व् वक्ता है.




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