वेदों में सिखाए गए दान धर्म और राममंदिर के लिए चंदे में इतना अंतर क्यों ..?
- Jitendra Chaurasia
- Jan 21, 2021
- 3 min read

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार चंदा या दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि जीवन भर किए गए दुष्कर्मों से मुक्त होने के लिए चंदा और दान एक माध्यम है।
ब्राम्हणों द्वारा चंदा या दान के चार प्रकार बताए गए हैं -
१. सात्विक
२. राजस
३. तामस
४. हरि (भगवान्) और हरिजन (संत, महात्मा, महापुरुष,
भक्ति जिन्होंने भगवान के दर्शन कर लिया हो जैसे
तुलसीदास, सूरदास, मीरा, तुकाराम इत्यादि)
१. सात्विक :
अगर सात्विक व्यक्ति को दान
करोगे, तो स्वर्ग मिलेगा। इसका आशय यदि शोषित, पीड़ित, बंचितों को दान देने से लगाया जाए तो समाज के हित में यह एकमात्र दान का स्वरुप है।
२. राजस :- अगर राजसी व्यक्ति को दान करोगे तो राजसी फल मिलेगा। अर्थात इस दान का मतलब पीएम केयर फंड में दान जैसा है जिसमें बड़े लोग अपने आर्थिक लाभ या पुराने आर्थिक पापों से मुक्ति के लिए करते हैं और राजाओं जैसा फल प्राप्त करते हैं
३. तामस :- अगर तामसी व्यक्ति को दान करोगे
तो नर्क मिलेगा। क्योंकि उस व्यक्ति ने उस पैसे का
दुरुपयोग किया तो आप भी उस अपराध में भागीदारी
हुए। दूसरे शब्दों में यदि नेताओं या राजनीतिक दलों को जो लोग चंदा देते हैं वो पुण्य की जगह पाप अर्जित करते हैं और नर्क को जाते हैं।
४. हरि अर्थात भगवान और उनके नाम पर जीवन जीने वाले लोग जैसे मंदिर का चंदा, साधू संतो को चंदा आदि।
भारत में आयकर कानून के सेक्शन 80G, 80GGA और 80GGC के तहत दान और चंदा दिए जाने पर टैक्स बेनिफिट प्राप्त करने का प्रावधान है.
अभी हमारे देश में दुनिया के सबसे बड़े चंदा वसूली का कार्यक्रम भगवान राम के जन्म स्थान अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के नाम पर चल रहा है। यूं तो पूर्व पिछले दो दशकों से भाजपा और आरएसएस द्वारा भगवान मंदिर के निर्माण के नाम पर चंदे का कार्यक्रम लगातार चलाया जाता रहा है।
अभी ट्रस्ट ने 10, 100 तथा 1000 रुपए के कूपन छपवाए हैं। चंद की रसीद के रूप में ये कूपन दिए जाएंगे। 42 दिन चलने वाले इस अभियान में साधु-संत भी शामिल होंगे। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के अनुसार 10 रुपए के 4 करोड़, 100 रुपए के 8 करोड़ तथा 1000 रुपये के 12 लाख कूपन छपवाए गए हैं। 2000 रुपए से ज्यादा सहयोग करने वालो को रसीद दी जाएगी।
अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के निर्माण पर करीब 1100 करोड़ का खर्च आंका गया है। यह चंदा पाँच लाख से ज्यादा गाँवों में बारह करोड़ से ज्यादा परिवारों से संपर्क कर वसूला जाएगा।
चंदा देकर नाम कमाने वालों की होड़ लग गई है।हमारे राष्ट्रपति ने भी 5 लाख 100 रुपए का चंदा दिया है।
रायबरेली के सुरेंद्र सिंह 1 करोड़ 11 लाख रुपए का सबसे बड़ा चंदा देने की खबर के बाद सूचना है कि अमेठी के राजेश मसाला ने 1 करोड़ 25 लाख रुपए का चंदा देने का फैसला किया है।
मध्यप्रदेश के कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा भी लाख रूपए चंदा देने की खबर है।
चंदा यूं तो काला सफेद नहीं होता ना हि चंदा लेने वाले को काले धन से परहेज़ होता है क्योंकि ज्यादातर चंदा तो दिया ही पाप धोने के लिए होता है।
कोई भी इससे अछूता नहीं है ना आम ना खास।
भारत में राजनीतिक दलों को चंदा लेने की खुली छूट है वह धन काला पीला या नीला भी नहीं होता और खुद की सुरक्षा के लिए राजनेता और राजनीतिक दलों ने नियम भी ऐसे बनाएं है कि देश का कानून उन्हें छू भी नहीं सकता।
भाजपा जैसे राजनीतिक दल हजारों करोड़ का चंदा चुनाव के एक साल में इकट्ठा करते हैं।यह कहानी एक दल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं कांग्रेस, बसपा , सपा और आप जैसी पार्टियां भी चंदे के इस खेल को बखूबी खेल रही है।
कुछ समाजसेवी लोग तो चंदे के धन से हवाई यात्राएं करते हैं। मर्सडीज में घूमते हैं। विदेश में आते जाते हैं।
यह इसलिए है कि लोग
पाप उतारने के लिए चंदा देते हैं।
एक व्यक्ति ने मुझसे चंदा कुछ इस अंदाज में मांगा
"राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट"
मैंने एक शब्द बदलकर उनसे कहा
"राम नाम पर लूट है तू भी मिलकर लूट"




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