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आजाद हो जाना खतरे को कम नहीं करता लेकिन आजादी के बाद फिर से गुलाम हो जाना निश्चित ही भयावह होता है

Updated: Jan 29, 2021


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स्वतंत्रता के लिए बड़ा खतरा है व्यक्ति पूजा की भारतीय आदत

गुलामी को वैसे तो शारीरिक माना जाता रहा है लेकिन गुलामी मानसिक भी होती है |दोनों ही तरह की गुलामी एक दूसरे को उत्पन्न करती हैं और एक दूसरे को पुष्ट करती हैं पश्चिमी देशों में गुलामी को आमतौर पर शारीरिक गुलामी के रूप में देखा जाता है |इस विचार की नींव प्राचीन ग्रीक में पड़ी इसके अनुसार कुछ मनुष्य केवल 'आदेश का पालन' करने के गुण के साथ पैदा होते हैं जबकि कुछ 'आदेश देने' के गुण के साथ गुलामी की इस अवधारणा को ग्रीक दार्शनिक अरस्तु ने व्यवस्थित तरीके से परिभाषित किया है |इस अवधारणा पर बनी व्यवस्था ने गुलामी की प्रथा को जन्म दिया ,जो कि पश्चिम देशों में खूब फली -फूली इसकी परिणीति अश्वेत लोगों को बाजार में खरीदने बेचने तक पहुंची |उस दौर में कई लोग सैकड़ों और हजारों तक गुलाम रखते थे इस तरह की गुलामी का एक कारण यह भी था कि श्वेत लोग अश्वेत को इंसान नहीं मानते थे |इस वजह से गुलाम रखने से गुलाम बनाने को लेकर उन्हें कोई अपराध बोध नहीं होता था|

इसी समझ की वजह से अफ्रीका के जंगलों से अश्वेत लोगों को पकड़कर बाजार में जानवरों की तरह खरीदा-बेचा जाता था उपनिवेशवाद का वैचारिक आधार भी श्रेष्ठ था कि यह श्वेत अवधारणा ही थी कि सिर्फ मनुष्य ही शासन करने के लिए पैदा हुए हैं| अपनी इस धारणा को फैला कर ही ब्रिटेन ,फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल जैसे छोटे-छोटे देशों ने पूरी दुनिया पर सैकड़ों साल तक राज किया|


गुलामी के खिलाफ संघर्ष


एक तरफ दुनिया भर में गुलामी बड़ी तो दूसरी तरफ थॉमस हॉब्स, जॉन लॉक, रूसो ,इमैनुऑल कांट , हीगल साइमन दे बुआ जैसे दर्शनिकों के विचारो से प्रभावित होकर इसके खिलाफ दुनिया भर में खूब संघर्ष भी हुए अब्राहम लिंकन, ज्योतिबा फुले ,महात्मा गांधी ,डॉक्टर .बी.आर नेम गुलामी समाप्त करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी भारत में मानसिक गुलामी से आजादी की लड़ाई की शुरुआत महात्मा गांधी ज्योतिबा फूले की जिन्होंने अपनी किताब 'गुलामगिरी' में पाखंड और जातिवाद की गुलामी से मुक्ति का रास्ता दिखाने की कोशिश की |

राजनीति में व्यक्ति राजनेता की पूजा या उसे नायक मानने का तरीका भी मानसिक गुलामी है नायक पूजा लोकतंत्र के लिए खतरनाक है और इसे भारत को नई मिली आजादी के लिए खतरे के तौर पर चिन्हित किया जा सकता है |

भारत में व्यक्ति पूजा और मानसिक गुलामी नायक की पूजा कई तरीकों से होती है |जिसमें एक है किसी व्यक्ति को महात्मा घोषित कर देना तो दूसरा है व्यक्ति में 'प्रकृति पद्धति ' या 'खास शक्ति 'के होने की बात को स्वीकार कर लेना जब लोग किसी व्यक्ति की पूजा करने लगते हैं ,तो उसकी आलोचना से भड़क जाते हैं हम इसे इस तरीके से भी समझा जा सकता है अगर किसी व्यक्ति या राजनेता की आलोचना मात्र से खुद लोगों का वह समूह नायक पूजा यानी मानसिक गुलामी का शिकार हो गया है |नायक पूजा करने वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास कम हो जाता है |इसे भारत में प्रतिवर्ष बनने वाली सैकड़ों फिल्मों से समझा जा सकता है ,हीरो के बिना भारत में कोई भी फिल्म लोकप्रिय नहीं हो सकती क्योंकि लोगों की मानसिकता ही ऐसी है कि आखिरी में हीरो सब कुछ ठीक कर देगा वैसे ही आम जिंदगी मे भी लोग सोचने लगते हैं कि 1 दिन कोई आएगा और उनकी सभी समस्याओं का समाधान कर देगा| ऐसा सोचते हुए लोग अपनी सोच और मेहनत पर भरोसा खो देते हैं और हीरो का इंतजार करते रहते हैं |

भारत में हर समुदाय को अपना हीरो चाहिए |हीरो सिर्फ वर्तमान में नहीं चाहिए बल्कि इतिहास में भी चाहिए | जिनके पास इतिहास में हीरो नहीं है वह ढूंढ रहा है और अगर नहीं मिल रहा तो बना रहा है|

नायक की पूजा तो दूसरा नकारात्मक पहलू यह भी होता है कि वह व्यक्ति को गलत निर्णय लेने को प्रेरित करता है| विज्ञापनों से इसे समझा जा सकता है ज्यादातर लोग उन वस्तुओं का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं जिनके विज्ञापन कोई रोल मॉडल करता है| कंपनियों ने वर्षों के अनुभव से लोगों की इस मानसिकता को समझ लिया है |

मानसिक गुलामी का अगला चरण बिग डाटा एनालिसिस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते इस्तेमाल के साथ आने वाले हैं क्योंकि इन आंकड़ों के आधार पर लोगों की मानसिकता की बेहतर स्टडी कंपनियों और राजनीतिक दलों के पास होगी और वे इसके मुताबिक रणनीति बनाकर फायदा उठा रहे होंगे|

 
 
 

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