1927 से 1933 तक चले चारी किसान आंदोलन के सामने तो अंग्रेज़ी सत्ता ने भी घुटने टेक दिए थे। जानिए कैसे
- Jitendra Chaurasia
- Jan 31, 2021
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सत्ता सदैव से ताकत का केन्द्र रही है।सत्ता का घमंड भी सदैव देखा जाता रहा है। अंग्रेजों के शासन काल में कई आंदोलन हुए। हमारे देश में जन्मआंदोलन के नायक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक आंदोलन के दम पर अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया । अंग्रेजों का घमंड टूटा और उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी।

हमारे आजादी के इतिहास में खेड़ा आंदोलन, चंपारण आंदोलन, असहयोग आंदोलन, नमक आंदोलन, दलित आंदोलन भारत छोड़ो आन्दोलन, आदि आंदोलन के बारे में हम सबने पढ़ा और समझा है। आजादी के बाद कांग्रेस के शासन काल में भी कई आंदोलन हुए जिसमें नायक जयप्रकाश नारायण जी द्वारा चलाया गया आन्दोलन देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो चुका है आंदोलन के तुरंत बाद कांग्रेस की क्या हालत थी ऐ भी इतिहास में दर्ज है कि इंदिरा गांधी जैसी सशक्त नेतृत्व को जनता ने ज़मीं पर लाकर खड़ा कर दिया था। अहंकार हारा था और जनता की जीत हुई थी।आज कमोवेश हालात वही है। घमंड से लबालब मोदी सरकार हैं, जिसमें आंदोलन को समझने का तजुर्बा नहीं।इस सरकार ने और ना ही मोदी ने कभी किसी बड़े आंदोलन का सामना नहीं किया।इतिहास से सीख नहीं लेने या जानकारी ना रखने के कारण मोदी सरकार ने भारतीय किसानों से पंगा ले लिया। हमारे देश के किसानों के शौर्य गाथा इतिहास में दर्ज है अब तक का सबसे बड़ा किसानों का आंदोलन अंग्रेजों के जमाने में हुआ था जो कि चारी किसान हड़ताल के नाम से इतिहास में दर्ज है।
यह आंदोलन छह साल तक चला था।भुखमरी की नौमत आ गई थी लेकिन किसान डटे रहे और छह सालों तक इस आंदोलन में शामिल किसानों ने खेती नहीं की। किसानों का यह आंदोलन महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में खोटी व्यवस्था के खिलाफ था।
खोट उस समय के बड़े जमींदार लोग थे।जिन गांवों में ऐ लोग रहते थे उन्हें खोटी गांव कहा जाता था।इनका काम सरकार की तरफ से किसानों से राजस्व की वसूली करना था।खोट लोग खुद को सरकार मानकर किसानों पर तानाशाही रवैया अपनाते हुए लूटते थे। किसान पूरे साल पहले पैदा करते अंत में सारा अनाज खोट लोगों के पास चला जाता था।खोट लोगों द्वारा किसानों का शोषण निजी कामों में भी होता था। 9वीं सदी के आखिरी समय में खोटों को चुनौती मिलनी शुरू हुई। 1921,1922,1923 में खोटों के खिलाफ रायगढ़ में आंदोलन हुए लेकिन उन आंदोलनों को कुचल दिया गया। ठीक वैसे ही जैसे कुछ वर्षों पहले गुजरात में हुए किसान आंदोलन को गुजरात की भाजपा सरकार ने खत्म किया था।
उस समय नारायण नागु पाटिल नामक किसान नेता ने फिर से आवाज उठाने का फैसला किया गांवों का दौरा किया कोंकण क्षेत्र किसान संघ 1927 में खोट व्यवस्था के खिलाफ बना था। रत्नागिरी, रायगढ़ में कई रैलियां हुईं। किसान नेताओं पर रैलियां और बोलने पर पाबंदियां लगा दी गई। जैसा की अभी भाजपा सरकार किसानों के आंदोलन को कुचलने की कोशिश कर रही है वो सब पहले अंग्रेजी शासन में भी किया था।
लेकिन किसानों का समर्थन बढ़ता गया ।25 दिसंबर 1930 को पेन तहसील में एक महत्वपूर्ण किसान सम्मेलन हुआ। किसान नेतृत्वकर्ता नारायण नागु पटेल और भाई अनंत चित्रे ने सम्मेलन का नेतृत्व किया।
इस सम्मेलन के प्रस्तावों पर आगे आंदोलन की आधारशिला रखी गई। ताबड़तोड़ रैलियां , सभाएं आयोजित की जाने लगी।
1933 में ऐतिहासिक आंदोलन हुआ। छ: साल के लम्बे आंदोलन ने सरकार की कमर तोड़ दी किसानों की जीत हुई। खोटी व्यवस्था का अंत किसानों के लम्बी लड़ाई के बाद हुआ।
आज घमंड से भारी मोदी सरकार इतिहास से कुछ सीख नहीं ले रही अन्यथा किसानों से पंगा लेने की गलती ना करती।




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