top of page

अर्थव्यवस्था पर लेखों के क्रम में एक और प्रस्तुत है -

मुद्रा की उत्पत्ति और विस्तार


गत वर्ष पूरे विश्व में सभी देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हुआ था उसका मूल्य करीब 19150 खरब रुपये था। जब कि शेयर और ऋण बाज़ारों में सालाना व्यापार का मूल्य करीब 52500 खराब रुपये था। वहीं देशों के मुद्रा का सालाना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार 1500000 खरब रुपये का था। पूरे विश्व में सालभर में कुल वस्तुओं और सेवाओं का जो उत्पादन हुआ है उसका मूल्य 106500 खरब रुपये का था। यह समझने के लिए कि मुद्रा का व्यापार का मूल्य इतना अधिक क्यों है, मुद्रा का इतिहास जानना होगा।

करीब 10000 वर्ष पहले जब मानवों ने खेती और पशुपालन प्रारम्भ किए एवं उनके पास बचत होने लगा तो सर्व प्रथम वे उस बचत का एक दूसरे के साथ अदला बदली करने लगे। परंतु अदला बदली मेन दिक्कत यह आती है कि आपस में विनिमय करने लायक वस्तुएं होनी चाहिए। इसलिए अदला बदली को और सुगम करने के लिए मुद्रा या पैसों का चलन हुआ। अगर सभी के मान्य एक मुद्रा हो तो उसके विनिमय वस्तुओं का अद्ल बदली यानि व्यापार संभव हो जाता है। इस मुद्रा को मान्यता तब मिलती है जब उसे कोई प्राधिकारी राज्य चलन में लाता है। इस प्रकार राज्य व्ययस्था, मुद्रा एवं व्यापार का प्रचालन लगभग एक साथ करीब 6000 वर्ष पूर्व हुआ वर्तमान इराक देश में सुमेरियान सभ्यता के साथ।

मुद्रा के तीन विशेष कार्य होता है। पहला तो यह कि वह वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय को सुगम करें। पर इसके लिए यह भी आवश्यक है कि मुद्रा मूल्य का संचयन कर सके क्योंकि अगर किसी वस्तु को मुद्रा के विनिमय में बेचने के बाद उसका मूल्य उस मुद्रा में संचयित नहीं हो तो फिर से उस मुद्रा से दूसरी वस्तु नहीं खरीद सकेंगे। यह मूल्य कितना है यह भी मुद्रा द्वारा अंकित किया जाता है। इस प्रकार मुद्रा न केवल विनिमय के दौरान प्राप्त मूल्य को अंकित कर संचयित करता है बल्कि व्यापार से जो लाभ और बचत होता है उसे भी संचयित करता है। हालांकि मूल्य को संचयित करने के लिए अन्य भी संपत्ति है जैसे सोना, चांदी, ज़मीन, मकान आदि पर वो इतना आसानी से विनिमायित नहीं किया जा सकता है जैसा कि मुद्रा। इसलिए सभ्यता के प्रारम्भ से विश्व भर में जो संपत्ति एकत्रित की गई है मानव द्वारा उसका एक हिस्सा मुद्रा के रूप में संचयित है। यह केवल नोट और पैसे के रूप में ही नहीं बल्कि बैंकों में जमा, कंपनियों के शेयर, म्यूचुअल फ़ंड के अंश आदि के रूप में भी संचयित है। इस प्रकार वर्तमान में बहुत अधिक मात्रा में मुद्रा पूरे विश्व में संचयित है। क्योंकि आर्थिक विकास लोगों के बीच में गैर बराबरी पैदा करता है इसलिए यह संचयित मुद्रा भी कुछ लोगों के हाथ में केन्द्रित है। हालांकि देश के सरकारों के पास भी बहुत मुद्रा होती है क्योंकि वे ही मुद्रा का नियमन और नियंत्रण करते है पर क्योंकि सरकारों पर धनवान लोगों का ही कब्जा रहता है इसलिए सरकारी नीतियाँ भी उनही के पक्ष में होता है।

आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा की छपाई एवं नियमन केन्द्रीय बैंकों की ज़िम्मेदारी होती है। भारत में यह काम रिजर्व बैंक करता है जिसे अंग्रेजों के ज़माना में ही 1934 में स्थापित किया गया था। केन्द्रीय बैंक मुद्रा बाज़ार का नियमन इस प्रकार करता है कि महंगाई अधिक न हो। यानि उसको यह सुनिश्चित करना होता है कि मुद्रा की जो मात्रा प्रचलन में है वो अधिक न हो जाये। साथ ही उसे यह देखना होता है कि आर्थिक विकास दर अधिक हो। इसके लिए केन्द्रीय बैंक ब्याज दर को नियंत्रित करता है। ब्याज दर अगर बहुत कम होता है तो सट्टेबाजी बढ़ती है और साथ ही महंगाई और ब्याज दर अगर बहुत अधिक हो तो आर्थिक निवेश कम हो जाती है। केन्द्रीय बैंक को यह भी देखना होता है कि देश की मुद्रा का अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक महंगा या सस्ता न हो। बहुत अधिक महंगा अगर हो जाता है तो निर्यात में कमी आती है और बहुत अधिक सस्ता अगर हो जाता है तो दूसरे देशों से आयात बढ़ जाती है। इसलिए केन्द्रीय बैंक को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में मुद्राओं का क्रय विक्रय लगातार करना होता है।

पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार में केवल सभी देशों के केन्द्रीय बैंक ही भाग नहीं लेते बल्कि विश्व के तमाम निजी वित्तीय संस्थाएं और अन्य व्यापारिक कंपनियाँ भी मुद्राओं के क्रय विक्रय करते है। मुद्राओं के मूल्य चाहे बढ़ या घट रहे हो यह कंपनियाँ उसमें से मुनाफा कमा लेते है। इस प्रकार मुद्रा के रूप में विशाल परिमाण में एकत्रित संपत्ति का व्यापार होते रहता है जो किसी अन्य व्यापार से बहुत अधिक है एवं यहा तक की किसी वर्ष में हो रहे पूरे विश्व के उत्पादन से भी बहुत अधिक है। पर यह मुनाफा आता कहाँ से है? यह आम मजदूर किसान की मेहनत से आता है। वर्तमान में अधिकतर मजदूर और किसान की आजीविका सुनिश्चित नहीं है एवं वे या तो कम वेतन पर दिहारी आर रहे होते है या अपनी फसल को बहुत कम कीमत पर बेच रहे होते। व्यापारी और कारख़ाना मालिक मजदूर और किसानों द्वारा उत्पादित वस्तुओं पर मुनाफा कमाते है और उस बचत को बैंकों में या वित्तीय संस्थाओं में जमा करते है या मुद्रा के रूप में रखते है। यह बैंक और वित्तीय संस्था अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ारों में जब क्रय विक्रय करते तब इसी मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा उन्हें मिल जाता है।

क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाज़ार किसी एक देश का नहीं है इसलिए अन्य बाज़ारों की तरह यह बिलकुल नियंत्रित नहीं है और न ही सरकारों द्वारा इस पर कोई कर लगाया जा रहा है। नोबल पुरस्कार से सम्मानित अमरीकी अर्थशास्त्री जेम्स टोबिन ने सुझाया था कि यह विशाल मुद्रा व्यापार को नियंमित कर इस पर कर लगाना चाहिए ताकि एक तरफ इससे इसमें कमाई जा रही बेतहाशा मुनाफे को नियंत्रित किया जा सके और दूसरी तरफ इससे प्राप्त कर से गरीबी उन्मूलन, शिक्षा एवं स्वस्थ्य पर खर्च करने के लिए सरकारों को संसाधन मिले। पर निजी वित्तीय संस्थाएं एवं बैंक इतनी शक्तिशाली है कि वे इस प्रस्ताव को क्रियान्वित होने नहीं दे रहे है।

 
 
 

Comments


bottom of page