नर्मदा नदी बेसिन जल विज्ञान डेटा रिपोर्ट :
- Rahul Banerjee
- Mar 11
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नर्मदा नदी भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है, जो मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों के लिए जल जीवनरेखा का काम करती है। यह नदी पीने के पानी, सिंचाई, बिजली उत्पादन और जैव विविधता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। लेकिन बढ़ते प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और इंसानी दखल के कारण इसके संरक्षण की आवश्यकता पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। इस रिपोर्ट में नर्मदा नदी के जल विज्ञान, जल प्रवाह, जल स्तर, भूजल की स्थिति और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। रिपोर्ट में वैज्ञानिक आंकड़ों और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है ताकि नर्मदा नदी के जल संसाधनों को समझा और सुरक्षित किया जा सके।
नर्मदा नदी भारत की उन गिनी-चुनी नदियों में से एक है जो पश्चिम दिशा में बहती हैं। यह नदी मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलकर गुजरात के खंभात की खाड़ी में जाकर मिलती है। इसकी कुल लंबाई करीब 1,312 किलोमीटर है और यह 95,959.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करती है। नर्मदा बेसिन को तीन हिस्सों में बाँटा गया है – ऊपरी नर्मदा, मध्य नर्मदा, और निचली नर्मदा। हर हिस्से में नदी की प्रवाह प्रणाली अलग-अलग तरीके से काम करती है। ऊपरी नर्मदा पहाड़ी और संकरी घाटियों में बहती है, मध्य नर्मदा मैदानी इलाकों में फैलती है, और निचली नर्मदा समुद्र के करीब पहुँचकर चौड़ी हो जाती है।

ऊपरी नर्मदा अमरकंटक से होशंगाबाद तक फैली हुई है और यहाँ नदी ऊँची पहाड़ियों और घने जंगलों से होकर बहती है। इस क्षेत्र में पानी की धारा तेज़ होती है, जिससे यह जलविद्युत परियोजनाओं के लिए उपयुक्त बन जाती है। हालांकि, यहाँ अत्यधिक कटाव और भूमि क्षरण की समस्या देखी जाती है। मध्य नर्मदा होशंगाबाद से नवगाम तक फैली हुई है और यह इलाका उपजाऊ मैदानों वाला है। यहाँ बड़े पैमाने पर खेती की जाती है और सिंचाई के लिए इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर जैसे बड़े बाँध बनाए गए हैं। लेकिन इस क्षेत्र में जंगलों की कटाई और प्रदूषण की समस्याएँ भी तेजी से बढ़ रही हैं। निचली नर्मदा गुजरात के मैदानी इलाकों में स्थित है, जहाँ नदी की गति धीमी हो जाती है और यह चौड़ी हो जाती है। यहाँ सरदार सरोवर बाँध बना हुआ है, जो पेयजल, कृषि और उद्योगों के लिए जल आपूर्ति करता है। हालांकि, इस क्षेत्र में औद्योगिक अपशिष्ट और बालू खनन के कारण नदी के प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है।
नदी के जल प्रवाह और जल स्तर की निगरानी करने के लिए कई केंद्र स्थापित किए गए हैं। इन केंद्रों से यह पता चलता है कि मानसून के दौरान जल स्तर बढ़ता है, लेकिन गर्मियों में यह काफी नीचे चला जाता है। बरमंगाट और होशंगाबाद क्षेत्रों में जल प्रवाह अधिक स्थिर रहता है, जबकि मंधलेश्वर और भरूच में जल प्रवाह वर्षा के अनुसार बदलता रहता है। नदी के ऊपरी हिस्सों में जलस्तर जल्दी गिरता है, जबकि निचले हिस्सों में यह अपेक्षाकृत स्थिर रहता है।
नर्मदा बेसिन में वर्षा की मात्रा पूरे क्षेत्र में समान नहीं होती। ऊपरी नर्मदा में अधिक वर्षा होती है, लेकिन मध्य और निचले हिस्सों में यह धीरे-धीरे कम हो जाती है। पिछले 40 वर्षों के डेटा से पता चलता है कि वर्षा में उतार-चढ़ाव बढ़ता जा रहा है। गर्मी के मौसम में तापमान बढ़ रहा है, जिससे पानी के वाष्पीकरण की दर बढ़ गई है। भूजल पुनर्भरण घटता जा रहा है, जिससे कई जगहों पर भूजल स्तर गिरता दिख रहा है।

नर्मदा बेसिन के कई हिस्सों में भूजल स्तर में गिरावट देखी गई है, खासकर मध्य और निचले हिस्सों में, जहाँ सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिए अत्यधिक जल निकासी हो रही है। होशंगाबाद और खंडवा में भूजल स्तर स्थिर दिखता है, लेकिन धार और बड़वानी में यह लगातार गिर रहा है। गुजरात के मैदानी इलाकों में भूजल की स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि यहाँ बारिश कम होती है और पानी का अधिक उपयोग किया जाता है।
इस रिपोर्ट में नर्मदा नदी के जल संरक्षण और बेहतर प्रबंधन के लिए कई सुझाव दिए गए हैं। जल संरक्षण की योजनाओं को लागू करने के लिए जल पुनर्भरण संरचनाएँ जैसे कि छोटे बाँध, चेक डैम और कृत्रिम जलाशय बनाए जाने चाहिए। कृषि में जल उपयोग की कुशल तकनीकों को अपनाने की ज़रूरत है, जिसमें ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी आधुनिक पद्धतियाँ मददगार साबित हो सकती हैं। भूजल के अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए और औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कारखानों से निकलने वाले कचरे को नदी में जाने से रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए।
नदी के पुनर्जीवन के लिए सरकार और जनता को मिलकर कार्य करना होगा। सरकार को इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, लेकिन आम नागरिकों की भागीदारी भी उतनी ही जरूरी है। नर्मदा नदी का संरक्षण केवल सरकारी नीतियों पर निर्भर नहीं कर सकता, बल्कि इसके लिए स्थानीय समुदायों को भी जागरूक होना पड़ेगा।
नर्मदा नदी भारत के लिए सिर्फ एक जल स्रोत नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और पर्यावरणीय धरोहर भी है। लेकिन जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक प्रदूषण और जल संसाधनों के अनुचित उपयोग के कारण यह संकट में है। इस रिपोर्ट में प्रस्तुत डेटा और सुझाव नर्मदा नदी के संरक्षण और सतत विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं। यदि नर्मदा को बचाना है, तो सरकार, वैज्ञानिकों, किसानों और आम नागरिकों को मिलकर जल संरक्षण के प्रयासों को तेज़ करना होगा। जल संसाधनों का सही उपयोग और प्रबंधन ही इस नदी और इसके आसपास के समाजों की समृद्धि को बनाए रखने का एकमात्र रास्ता है।
लेखक - प्रणब कुमार महापात्र, सी.एन.नर्मदा, आईआईटी गांधीनगर,
मनीष कुमार गोयल, सी.नर्मदा, आईआईटी इंदौर
सुनील कुमार, सी.नर्मदा, आईआईटी गांधीनगर
भानु परमार, सी.नर्मदा, आईआईटी गांधीनगर
श्रीजा रॉय, सी.नर्मदा, आईआईटी इंदौर
कपिल प्रकाशभाई राठौड़, सी.नर्मदा, आईआईटी गांधीनगर
सुशील कुमार जयसवाल, सी.नर्मदा, आईआईटी गांधीनगर
जीतेन्द्र पोद्दार, सी.नर्मदा, आईआईटी गांधीनगर
अनुवादक - राहुल बनर्जी
उद्दरण - राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय जल शक्ति मंत्रालय, जल संसाधन विभाग, नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन भारत सरकार(दिसम्बर 2024)

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