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बहुजन नायक कांशीराम: समाज बदलने वाले महापुरुष :

कांशीराम जी का जीवन संघर्ष और सामाजिक परिवर्तन की मिसाल है। उन्होंने अपना पूरा जीवन बहुजन समाज—दलित, पिछड़ा, आदिवासी और अल्पसंख्यकों—के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। उनका सपना था कि दबे-कुचले समाज को बराबरी का हक मिले और वे सत्ता में भागीदारी हासिल करें।


महान भारतीय राजनीतिज्ञ, आंबेडकरवादी, ब्राह्मणवाद विरोधी, बहुजनों के नेता, महान समाजसेवी कांशीराम पंजाब के खवासपुर गांव से थे। वे सिख परिवार में पैदा हुए थे, जिसे अछूत माना जाता था।



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आज मैंने काशिराम जी के जीवन के बारे मे पढा और फिर मुझे समझ आया कि सिर्फ आरक्षण से बदलाव नहीं आएगा,समाज को संगठित होकर सत्ता की चाबी अपने हाथ में लेनी होगी।

इसी सोच के साथ उन्होंने 1978 में बामसेफ, 1981 में डीएस-फोर और 1984 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना की। उनका नारा "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" सामाजिक न्याय की गूंज बन गया।


कांशीराम जी ने समाज को यह सिखाया कि अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना ही असली आज़ादी है। उनके नेतृत्व में बसपा ने राजनीति में नया इतिहास रचा और पहली बार 1995 में उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार बनी। उन्होंने सत्ता को बहुजन समाज के लिए एक साधन बनाया, जिससे उनके हक और सम्मान की रक्षा हो सके।


1958 में ग्रेजुएशन पास करने के बाद पुणे स्थित क्क्क में बतौर सहायक वैज्ञानिक काम किया था। इसी दरमियान बाबा साहब अंबेडकर जयंती पर सार्वजनिक छुट्टी को लेकर किए गए संघर्ष से उनका मन नौकरी से छूट कर सामाजिक संघर्ष में लग गया।



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1995 में बसपा सरकार बनने के बाद उनकी शिष्या मायावती मुख्यमंत्री बनीं, जिससे बहुजन राजनीति को नई दिशा मिली। कांशीराम जी का संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि उन्होंने सामाजिक समानता और अधिकारों की लड़ाई भी लड़ी।


कांशीराम जी ने अपने पूरे जीवन को सामाजिक न्याय और बहुजन उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने हाशिए पर खड़े समाज को न केवल एक नई पहचान दी, बल्कि उन्हें राजनीतिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने का कार्य किया


9 अक्टूबर 2006 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और संघर्ष आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। उनका सपना था कि बहुजन समाज संगठित होकर अपने हक की लड़ाई खुद लड़े और सशक्त बने। कांशीराम जी का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा है कि जब तक समाज में समानता नहीं आती, तब तक संघर्ष जारी रखना ही हमारा कर्तव्य है।

आज भले ही कांशीराम जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विचारधारा जिंदा है। हर बहुजन के दिल में, हर उस इंसान के संघर्ष में, जो समानता और अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है। उनका सपना था कि हर वंचित वर्ग शिक्षित बने, संगठित हो और संघर्ष के लिए हमेशा तैयार रहे।


कांशीराम सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक पूरी क्रांति थे, हैं और रहेंगे।

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