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भारतीय संविधान की सफलता को मापना: इसके सिद्धांतों, कार्यान्वयन और चुनौतियों पर एक विचार-


भारत का संविधान देश को एकजुट रखने और सभी लोगों को बराबरी का अधिकार देने के लिए बनाया गया था। इसमें बताया गया है कि देश कैसे चलेगा, लोगों के अधिकार क्या होंगे और सरकार की जिम्मेदारियाँ क्या होंगी। संविधान ने यह तय किया कि कोई भी भेदभाव नहीं होगा – चाहे कोई अमीर हो या गरीब, किसी भी जाति या धर्म का हो। संविधान ने यह भी कहा कि हर किसी को शिक्षा, न्याय और सम्मान से जीने का अधिकार है। यह सिर्फ एक कानून की किताब नहीं, बल्कि भारत को बेहतर बनाने का सपना है। यह हमें सिखाता है कि सबको साथ लेकर चलना है। आज़ादी के बाद भारत को जोड़ने में संविधान की बड़ी भूमिका रही है। यह हमारे देश की रीढ़ की हड्डी जैसा है। इसके ज़रिए हम एक मजबूत और बराबरी वाला समाज बना सकते हैं। यही संविधान की सबसे बड़ी ताकत है।

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अब सवाल उठता है कि क्या हमारा संविधान अपने उद्देश्यों में सफल हुआ है? क्या सबको न्याय, बराबरी और आज़ादी मिली है? क्या वंचित वर्गों को वह अधिकार मिले जिनका संविधान ने वादा किया था? इन बातों को जानने के लिए हमें लोगों के जीवन में बदलाव देखना होगा। कानूनों से ज़्यादा ज़रूरी है कि ज़मीनी हकीकत में क्या बदला। हमें यह देखना होगा कि सरकार और नागरिक, दोनों ने संविधान को कितना अपनाया। लोकतंत्र सिर्फ वोट डालना नहीं है, बल्कि हर दिन संविधान को जीना है। हमें यह भी देखना चाहिए कि क्या हर किसी को उसकी बात कहने का अधिकार है। संविधान की सफलता तभी मानी जाएगी जब इसका असर आम लोगों की ज़िंदगी में दिखे। यह तभी होगा जब सब मिलकर इसके मूल्यों को अपनाएँगे।

संविधान ने वंचित वर्गों – जैसे दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों – को आगे लाने की कोशिश की। आरक्षण, मुफ्त शिक्षा, और योजनाओं से उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिला। कई लोग इससे आगे बढ़े भी हैं, पर अभी भी कई लोग पीछे हैं। जातिगत भेदभाव और गरीबी आज भी समाज में हैं। इसका मतलब यह है कि कानून तो बने, लेकिन ज़मीन पर उन्हें पूरी तरह लागू नहीं किया गया। जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक असली बदलाव नहीं होगा। लोगों को एक-दूसरे को बराबर मानना होगा। सामाजिक न्याय सिर्फ सरकार की नहीं, हम सब की जिम्मेदारी है। जब तक सबको बराबरी का सम्मान नहीं मिलेगा, संविधान का सपना अधूरा रहेगा। हमें सोच और व्यवहार दोनों बदलने होंगे। तभी संविधान की बात सच्चाई बन पाएगी।

भारत में हर वयस्क को वोट देने का अधिकार मिला है – यह बहुत बड़ी बात है। इससे हर व्यक्ति को अपनी बात कहने और सरकार चुनने का मौका मिला। महिलाएं, दलित और आदिवासी अब पंचायतों और संसद तक पहुँचे हैं। पर कई बार यह भागीदारी सिर्फ दिखावटी होती है। असली शक्ति अब भी कुछ लोगों के पास है। महिलाओं की संख्या अब भी कम है, और कई नेताओं को निर्णय लेने नहीं दिया जाता। इसलिए ज़रूरी है कि सिर्फ प्रतिनिधि चुनने से काम न चले, बल्कि उन्हें सही अधिकार भी मिलें। जब हर वर्ग की आवाज़ सरकार में गूंजेगी, तब संविधान सफल माना जाएगा। राजनीति में सच्चा प्रतिनिधित्व बहुत ज़रूरी है। यह केवल एक सीट से नहीं, बल्कि ताकत और सम्मान से जुड़ा है। इसलिए हमें राजनीतिक भागीदारी को और मजबूत करना होगा।

संविधान की रक्षा में न्यायपालिका यानी अदालतों की भूमिका बहुत अहम रही है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कई बार सरकार को रोका जब उसने गलत फैसले लिए। अदालतों ने मौलिक अधिकारों की रक्षा की और कहा कि संविधान की मूल बातें कोई नहीं बदल सकता। लेकिन कभी-कभी अदालतों पर पक्षपात के आरोप भी लगे हैं। इससे लोगों का भरोसा कमजोर होता है। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है कि न्यायपालिका स्वतंत्र और ईमानदार रहे। आम लोगों को जल्दी और सस्ता न्याय मिलना चाहिए। अगर न्याय में देरी होगी, तो संविधान का मकसद अधूरा रह जाएगा। अदालतों को कमजोरों की आवाज़ बनना चाहिए। तभी संविधान की असली ताकत दिखेगी।

भारत में अमीरी और गरीबी के बीच बहुत बड़ा अंतर है। संविधान ने कहा था कि सभी को समान आर्थिक अवसर मिलेंगे, लेकिन हकीकत में कुछ ही लोग बहुत अमीर हैं और कई लोग आज भी गरीब हैं। रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य में भी असमानता है। सरकार ने कई योजनाएँ चलाईं, लेकिन उनका लाभ हर किसी तक नहीं पहुँचा। इसके कारण कई लोग आज भी पीछे हैं। आर्थिक न्याय के बिना सामाजिक और राजनीतिक न्याय अधूरा है। गरीबों को ज़्यादा मौके देने होंगे और योजनाओं को ज़मीन तक पहुँचाना होगा। हमें ऐसा समाज बनाना होगा जहाँ हर कोई आगे बढ़ सके। तभी संविधान सफल होगा। बराबरी का सपना सिर्फ बातों से नहीं, काम से पूरा होगा।

संविधान ने यह तय किया था कि देश में केंद्र और राज्य दोनों की सरकारें होंगी। लेकिन धीरे-धीरे केंद्र सरकार की ताकत ज़्यादा हो गई और राज्यों को पूरी आज़ादी नहीं मिल पाई। कई बार राज्यों को ज़रूरी फैसले लेने से रोका गया। संविधान चाहता था कि गाँव और शहरों को भी फैसले लेने की ताकत दी जाए। पंचायती राज लागू हुआ, लेकिन उन्हें पैसे और अधिकार अब भी कम मिलते हैं। जब तक हर स्तर की सरकार को बराबरी से काम करने की आज़ादी नहीं मिलेगी, लोकतंत्र अधूरा रहेगा। विकेंद्रीकरण से लोगों की भागीदारी बढ़ेगी और शासन बेहतर होगा। संविधान तभी सफल माना जाएगा जब हर क्षेत्र को अपनी बात कहने और फैसले लेने का अधिकार मिलेगा। हमें केंद्र और राज्य में संतुलन बनाए रखना होगा।

संविधान ने हमें बोलने की, लिखने की और अपनी राय रखने की आज़ादी दी है। यह लोकतंत्र का सबसे ज़रूरी हिस्सा है। लेकिन कई बार सरकारें इन आज़ादियों को रोकने की कोशिश करती हैं। पत्रकारों, एक्टिविस्टों और आम लोगों को डराया जाता है। सोशल मीडिया पर निगरानी होती है और कई बार कानूनों का गलत इस्तेमाल होता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला संविधान की आत्मा पर हमला है। हर नागरिक को अपने विचार खुलकर रखने का हक मिलना चाहिए। संविधान की सफलता इस पर निर्भर है कि हम कितनी खुली बात कर सकते हैं। बिना डर के बोलना ही सच्चे लोकतंत्र की पहचान है। इसलिए इन अधिकारों की रक्षा ज़रूरी है। तभी संविधान का असली मकसद पूरा होगा।

डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि संविधान के साथ हमें नैतिकता भी चाहिए। यानी संविधान के नियमों को सिर्फ किताब में पढ़ना नहीं, बल्कि व्यवहार में लाना चाहिए। आज की राजनीति में नैतिकता कम हो गई है – जाति, धर्म और पैसे के नाम पर वोट माँगे जाते हैं। नेताओं और जनता दोनों को संविधान की भावना समझनी होगी। नागरिकों को भी अपने कर्तव्यों को निभाना होगा, सिर्फ अधिकार माँगना ही काफी नहीं है। अगर हम सभी ईमानदारी से संविधान को अपनाएँगे, तो देश बेहतर बनेगा। नैतिक आचरण के बिना संविधान अधूरा है। हमें देश और समाज के लिए सोचकर काम करना होगा। यही संवैधानिक नैतिकता है।

भारत का संविधान दुनिया में सबसे अनोखा और बड़ा है। इसने एक बंटे हुए देश को जोड़ा और सभी को एक पहचान दी। इसमें सबके लिए जगह है – चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, भाषा या राज्य का हो। यह संविधान हमें समानता, न्याय और स्वतंत्रता का रास्ता दिखाता है। पर इसका सपना अभी पूरी तरह पूरा नहीं हुआ है। हमें लगातार कोशिश करनी होगी कि यह ज़मीनी हकीकत बने। सरकार, अदालत, नेता और आम लोग – सबको मिलकर इस दिशा में काम करना होगा। संविधान को जीवित रखने के लिए उसके आदर्शों को हर दिन अपनाना होगा। तभी हम कह पाएँगे कि हमारा संविधान सच में सफल हुआ है।


लेखक : डॉ . संतोष कुमार

अनुवादक : जितेंद्र राजाराम वर्मा

उद्दरण: एन इंटरनेशनल पीर रिव्यूड / रीफेरीड जर्नल ऑफ मल्टीडिसप्लनेरी रिसर्च  (संस्करण : 2 , समस्या : 3 ,  मार्च  : 2025)


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