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मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: आज़ादी के सिपाही और शिक्षा के शिल्पकार

Updated: Mar 2


मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, शिक्षा और राष्ट्र निर्माण के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। वे न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक प्रभावशाली विचारक, लेखक, पत्रकार और भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में आधुनिक भारत की नींव रखने वाले महान पुरुषों में से एक थे। उनका जीवन संघर्ष, बौद्धिकता और देशभक्ति का प्रतीक था।

मौलाना आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का (सऊदी अरब) में हुआ था। उनका असली नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था, लेकिन बाद में वे मौलाना आज़ाद के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके पिता मौलाना खैरुद्दीन एक इस्लामिक विद्वान थे, और उनकी माता अरब मूल की थीं। जब वे कुछ ही वर्ष के थे, तब उनका परिवार भारत लौट आया और कोलकाता में बस गया। छोटी उम्र में ही उन्होंने अरबी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी जैसी कई भाषाओं में दक्षता हासिल कर ली थी।


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मौलाना आज़ाद ने अपना सार्वजनिक जीवन पत्रकारिता के माध्यम से प्रारंभ किया। उन्होंने 'अल-हिलाल' और 'अल-बलाग़' नामक पत्रिकाओं का संपादन किया, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनचेतना जगाने का महत्वपूर्ण माध्यम बनीं। उनकी धारदार लेखनी ने युवाओं और स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया। ब्रिटिश सरकार ने उनके पत्रों को प्रतिबंधित कर दिया और उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।

उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। वे 1923 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने। उनका मानना था कि हिंदू-मुस्लिम एकता भारत की स्वतंत्रता के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने मुस्लिम लीग की "दो राष्ट्र" की थ्योरी का खुलकर विरोध किया और भारत के विभाजन को रोकने के लिए प्रयास किए। वे महात्मा गांधी और पंडित नेहरू के निकट सहयोगी थे और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई बार जेल भी गए।

15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ, और उसके बाद मौलाना आज़ाद को देश का पहला शिक्षा मंत्री बनाया गया। उन्होंने भारत में शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्थापना हुई, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs) की नींव रखी गई और राष्ट्रीय शिक्षा नीति का खाका तैयार किया गया। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने और विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में ऐतिहासिक कार्य किए।

मौलाना आज़ाद भारतीय संस्कृति और विरासत के संरक्षक भी थे। उनकी सोच समावेशी थी और वे सभी धर्मों, समुदायों और जातियों को एक साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। उन्होंने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे न केवल मुस्लिम समाज के लिए, बल्कि पूरे भारतीय समाज के लिए प्रेरणा थे।

उनकी प्रमुख कृतियों में 'इंडिया विंस फ्रीडम' और 'ग़ुबार-ए-ख़ातिर' शामिल हैं, जिनमें उन्होंने अपने राजनीतिक और दार्शनिक विचारों को विस्तार से प्रस्तुत किया है। उनकी विद्वता, भाषा पर पकड़ और ऐतिहासिक दृष्टिकोण उन्हें एक असाधारण लेखक बनाता है।

22 फरवरी 1958 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी शिक्षा, विचारधारा और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण आज भी जीवित हैं। भारत सरकार ने उनकी स्मृति में 11 नवंबर को 'राष्ट्रीय शिक्षा दिवस' घोषित किया, जिससे उनकी शिक्षा के क्षेत्र में दी गई योगदान को याद किया जा सके।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद केवल एक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि वे एक संकल्प, एक विचारधारा और एक युग थे। उन्होंने भारत को जो दिया, वह सदियों तक याद किया जाएगा। उनका जीवन संदेश हमें सिखाता है कि शिक्षा, एकता और सहिष्णुता से ही एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है।

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