शिक्षित व्यक्तियों को क्षेत्रीय चुनाव क्यू लड़ना चाहिए ?
- Rahul Dubey

- Jul 26
- 3 min read
आज का समय बदलाव का है। लेकिन यह बदलाव सिर्फ नारों से नहीं आएगा, बल्कि ऐसे नेतृत्व से आएगा जो समझदार, संवेदनशील और शिक्षित हो। खासकर क्षेत्रीय राजनीति में, जहां नेताओं का सीधा संबंध गांव, मोहल्ले और आम लोगों से होता है, वहां अगर नेतृत्व बेहतर और पढ़ा-लिखा हो, तो उसका असर समाज के हर कोने तक पहुंचता है।

एक क्षेत्रीय नेता तय करता है कि वहां किस दिशा में विकास होगा — स्कूल बनेगा या शराब की दुकान, सड़क बनेगी या सिर्फ वादों की राजनीति चलेगी। यदि यह निर्णय अनपढ़, अपरिपक्व और केवल दिखावे वाले लोगों के हाथ में रहेगा, तो उसका नुकसान सिर्फ एक व्यक्ति को नहीं, पूरे समाज को भुगतना पड़ता है। दूसरी ओर, जब कोई शिक्षित व्यक्ति चुनाव लड़ता है, तो वह योजनाओं को न केवल समझता है, बल्कि उन्हें धरातल पर लागू करने की ताकत भी रखता है। वह सरकारी सिस्टम की भाषा समझता है, पंचायत से लेकर विधायक और अधिकारियों से तार्किक बात कर सकता है और जनता के अधिकारों की मजबूती से रक्षा कर सकता है।
आज का युवा शिक्षित है, जागरूक है और डिजिटल दुनिया से जुड़ा हुआ है। वह बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार और आधारभूत सुविधाओं जैसे मुद्दों को अच्छी तरह समझता है। लेकिन अगर उसकी ये जागरूकता सिर्फ सोशल मीडिया पर बहस तक सीमित रह जाए, तो असली बदलाव नहीं आ सकता। यह जरूरी है कि यही जागरूक युवा अब राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाएं। वे न केवल अपनी पीढ़ी की आवाज़ बन सकते हैं, बल्कि क्षेत्र में एक नई सोच और विकास की राजनीति की नींव भी रख सकते हैं।
क्षेत्रीय चुनाव में नेता का चेहरा, उसके विचार, उसकी साख और कार्यशैली जनता के रोज़मर्रा के जीवन को प्रभावित करती है। इसलिए जब कोई ईमानदार, पढ़ा-लिखा और संवेदनशील व्यक्ति सामने आता है, तो लोग उसे न केवल नेता मानते हैं, बल्कि उम्मीद का प्रतीक भी मानने लगते हैं।
"राजनीति को बदलने के लिए उसमें आना जरूरी है — खासकर क्षेत्रीय चुनाव में"
अक्सर हम सुनते हैं — "राजनीति गंदी है", "अच्छे लोग राजनीति में नहीं जाते", "हम बस वोट देने तक ही ठीक हैं"। लेकिन असल में यही सोच राजनीति की सफाई में सबसे बड़ी रुकावट बन चुकी है। अगर अच्छे, ईमानदार और पढ़े-लिखे लोग राजनीति से दूर रहेंगे, तो सत्ता उन लोगों के हाथों में ही जाएगी जो न तो समाज की ज़रूरतों को समझते हैं और न ही जनहित की प्राथमिकताओं को जानते हैं।
क्षेत्रीय चुनाव का मतलब सिर्फ MLA या सांसद नहीं होता — यह पंचायत, नगर पालिका, वार्ड, जिला परिषद जैसे छोटे-छोटे चुनावों से शुरू होता है, जो सीधा आपके गली-मोहल्ले, गांव और जीवन पर असर डालते हैं। यही वो जगह है जहां से राजनीति की जड़ें शुरू होती हैं। अगर यहां अच्छा नेतृत्व नहीं होगा, तो ऊपर तक भ्रष्टाचार, विकास की अनदेखी और अव्यवस्था ही पहुंचेगी।

आज ज़रूरत इस बात की है कि हम सिर्फ वोटर न बनें, बल्कि प्रत्याशी भी बनें। अगर आप शिक्षित हैं, समाज के मुद्दों को समझते हैं, और आपके भीतर कुछ अच्छा करने की इच्छा है — तो अब पीछे रहने का समय नहीं, आगे बढ़ने का समय है।
क्षेत्रीय चुनाव में एक अच्छा उम्मीदवार बदलाव की असली शुरुआत कर सकता है:
वह क्षेत्र में स्कूल, अस्पताल, साफ-सफाई, जल आपूर्ति और सड़क जैसे बुनियादी मुद्दों को प्राथमिकता देगा।
वह जनता की बात को सही भाषा में अधिकारियों तक पहुंचाएगा और समाधान के लिए संघर्ष करेगा।
वह सिर्फ जाति, धर्म या पार्टी की राजनीति नहीं करेगा, बल्कि काम की राजनीति करेगा।
आज राजनीति को सिर्फ आलोचना की नहीं, सक्रिय भागीदारी की जरूरत है। बदलाव ऊपर से नहीं नीचे से आता है — और क्षेत्रीय चुनाव ही वह नींव है जहां से नयी राजनीति की इमारत खड़ी की जा सकती है।
इसलिए अब वक्त है कि हम "राजनीति को बदलना चाहिए" कहने से आगे बढ़ें और कहें — "हां, अब हमें ही राजनीति में आना चाहिए"। यही असली नेतृत्व होगा, यही असली जनसेवा, और यही देश और समाज को नई दिशा देने का रास्ता।
"सिर्फ आलोचक बनकर नहीं, बल्कि नेतृत्व करके ही असली जनसेवा की जा सकती है। यही बदलाव की असली शुरुआत है।"
लेखक- राहुल दुबे (सहायक मतदान.कॉम )




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