ट्रेड वॉर का नया दौर
- ज्योत्सना वर्मा
- Aug 20
- 4 min read

यह ऐसा समय है जब कोई भी देश अकेला नहीं है। एक देश की नीतियों और फैसलों का असर केवल उसकी सीमाओं तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरी दुनिया में लहर की तरह फैलता है। चाहे वह आर्थिक नीतियाँ हों, राजनीतिक बदलाव हों या व्यापारिक समझौते – आज हर कदम का वैश्विक असर पड़ता है।
👉 अगर अमेरिका की अर्थव्यवस्था हिलती है, तो उसका असर यूरोप तक पहुँचता है।
👉 अगर चीन में कोई नीति बदलती है, तो उसका असर एशिया और अफ्रीका के बाज़ारों पर दिखता है।
👉 और अगर भारत जैसा उभरता हुआ देश किसी फैसले से प्रभावित होता है, तो उसकी गूँज पूरी दुनिया में सुनाई देती है।
हाल ही में अमेरिका ने भारत से आने वाले कई उत्पादों पर टैरिफ (Tariff) बढ़ाने का ऐलान किया है। यह सिर्फ व्यापारिक कर (Tax) की एक तकनीकी घोषणा नहीं है, बल्कि एक ऐसा फैसला है जो भारत के लाखों किसानों, छोटे व्यापारियों और आम मजदूरों की ज़िंदगी को प्रभावित कर सकता है।
📌 टैरिफ का मतलब है – किसी भी सामान पर लगाया गया अतिरिक्त कर।अमेरिका ने यह कदम अपने घरेलू उद्योगों को बचाने के नाम पर उठाया है, लेकिन इसका सबसे ज़्यादा बोझ भारतीय किसानों और व्यापारियों पर पड़ेगा।
1️⃣ टैरिफ (Tariff) क्या है और क्यों लगाया गया?
टैरिफ यानी कर/शुल्क, जो किसी देश द्वारा आयात–निर्यात पर लगाया जाता है।
अमेरिका ने भारत से आने वाले कई सामानों पर 50% तक का टैरिफ लगा दिया है।
अमेरिका का कहना है कि यह उसके घरेलू उद्योग और मज़दूरों को बचाने के लिए है।
लेकिन भारत के लिए यह एक बड़ा आर्थिक और राजनीतिक झटका है।
2️⃣ भारत की जनता पर असर:
महंगाई का असर: जब भारत का निर्यात घटेगा तो सरकार को राजस्व में कमी होगी, जिससे आम जनता पर करों का बोझ बढ़ सकता है।
बेरोज़गारी बढ़ेगी: कपड़ा, आभूषण, और कृषि उत्पादों की डिमांड अमेरिका से घटने पर मज़दूरों की नौकरियाँ जा सकती हैं।
किसानों की आय गिरेगी: अमेरिका भारतीय कृषि उत्पादों का बड़ा बाज़ार है। टैरिफ से भारतीय किसान अपनी उपज अच्छे दामों पर नहीं बेच पाएंगे।
छोटे व्यापारी प्रभावित: रत्न-आभूषण और छोटे स्तर के निर्यातक अमेरिका से ऑर्डर खो देंगे।
3️⃣ किसानों पर सीधा असर:
अमेरिका भारतीय कपास, मसाले, अनाज और खाद्य पदार्थ खरीदता है।
अब महंगा पड़ने की वजह से अमेरिकी कंपनियाँ दूसरे देशों से खरीदेंगी।
इससे भारत के किसानों को कम दाम पर फसल बेचनी पड़ेगी।
पहले ही किसानों की हालत कमजोर है, ऐसे में यह कदम उनकी आर्थिक परेशानियाँ बढ़ा देगा।
4️⃣ छोटे व्यापारियों पर असर:
छोटे निर्यातक, खासकर रत्न-आभूषण, टेक्सटाइल और मशीनरी वाले, अब अमेरिका को सामान बेचने में मुश्किल झेलेंगे।
पहले जहाँ अमेरिका से बड़ी डिमांड आती थी, अब वह कम हो जाएगी।
यह छोटे व्यापारियों को नुकसान और कर्ज़ की ओर धकेल सकता है।
5️⃣ भारत की GDP पर असर:
विशेषज्ञों का मानना है कि टैरिफ से भारत की GDP में लगभग 0.6% की गिरावट आ सकती है।
निर्यात घटने का सीधा असर उत्पादन, रोजगार और निवेश पर पड़ेगा।
अगर लंबी अवधि तक यह जारी रहा तो भारत की आर्थिक विकास दर धीमी पड़ सकती है।
6️⃣ राजनीतिक दृष्टिकोण से नुक़सान:
सरकार पर दबाव: जनता महंगाई और बेरोज़गारी से परेशान होगी, जिससे सरकार को विपक्ष के हमलों का सामना करना पड़ेगा।
किसानों की नाराज़गी: किसान पहले से ही लागत बढ़ने और MSP की मांग को लेकर आंदोलित रहते हैं। टैरिफ की चोट उनकी नाराज़गी और गुस्सा बढ़ा सकती है।
छोटे व्यापारियों का असंतोष: व्यापारी वर्ग भारत की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा हैं। उनके नुकसान से सरकार की छवि और वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।
विपक्ष का मुद्दा: विपक्ष इस मुद्दे को उठाकर सरकार पर दबाव बनाएगा कि उसने अमेरिका से सही व्यापारिक रिश्ते क्यों नहीं संभाले।
विदेश नीति पर सवाल: यह मुद्दा भारत–अमेरिका संबंधों पर भी राजनीतिक बहस को जन्म देगा।
7️⃣ भारत की प्रतिक्रिया और विकल्प:
नए बाज़ार: भारत यूरोप, अफ्रीका और एशिया के देशों में निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
घरेलू उत्पादन: "आत्मनिर्भर भारत" और "मेक इन इंडिया" के तहत उद्योगों को मज़बूत करना ज़रूरी होगा।
किसानों को राहत पैकेज: सरकार को किसानों को सीधे मदद देनी पड़ सकती है।
FTA समझौते: भारत को ऐसे देशों से समझौते करने चाहिए जहाँ कम टैरिफ हो।
राजनीतिक कूटनीति: अमेरिका पर दबाव डालना और WTO (विश्व व्यापार संगठन) में अपनी बात रखना भारत के लिए आवश्यक होगा।
8️⃣ Christopher Wood की राय:
Christopher Wood जैसे बड़े विश्लेषक मानते हैं कि:
अभी भारत से दूर जाने का नहीं, बल्कि भारत में निवेश करने का समय है।
यह टैरिफ स्थायी नहीं होगा, बल्कि अस्थायी दबाव है।
भारत की अर्थव्यवस्था में लंबे समय में विकास की क्षमता बहुत बड़ी है।
9️⃣ निष्कर्ष:
टैरिफ सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि यह सीधे किसान, मज़दूर और छोटे व्यापारियों की रोज़ी-रोटी से जुड़ा मामला है।
अगर भारत की GDP गिरती है तो इसका असर हर घर की आमदनी, रोज़गार और जीवन-स्तर पर पड़ेगा।
राजनीतिक रूप से यह मुद्दा आने वाले चुनावों में बड़ा विषय बन सकता है, क्योंकि जनता की नाराज़गी सरकार को घेर सकती है।
अब सवाल यह है कि भारत इस संकट को कैसे अवसर में बदले और नई रणनीति से अपनी अर्थव्यवस्था को और मज़बूत करे।
लेखक- ज्योत्सना वर्मा
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