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मुद्दों को बारीकी से समझने वाले राहुल गाँधी की नेतृत्व क्षमता में क्या कमियाँ हैं?


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पिछले एक साल में मैंने देखा कि राहुल गाँधी ने विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय रखी। हर बार समय से पहले उन्होंने सरकार को सावधान किया। पर सरकार ने उनकी हर बात को हलके में लिया। कुछ मंदबुद्धि कैबिनेट मंत्रियों ने उनका मज़ाक बनाया। अच्छे खासे पढ़े लिखे और अनुभवी स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने भी उन्हें सीरियसली नहीं लिया।


मगर इस एक साल के दौरान राहुल द्वारा कही गयी हर बात को न मानने का खामिआज़ा भारत के लोगों ने भुगता है। चाहे वह महामारी की बात हो, अर्थव्यवस्था की बात हो, भ्रष्टाचार की बात हो या भारत की ज़मीन की बात हो।


हर मुद्दे पर भारी नुकसान उठाने के बाद सरकार ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गाँधी की बात को माना है। भाजपा के कैबिनेट मंत्रियों (छुटपुट नेताओं को तो छोड़ ही दें) ने अपने ओछेपन को उजागर किया है। वाकई ये मंत्री किसी काम के नहीं है। देश चलाने की कुव्वत इनमें नहीं।


मैं कांग्रेस का कार्यकर्ता नहीं हूँ, न ही पदाधिकारी हूँ। मैंने यह बात लिखना इसलिए भी ज़रूरी समझा कि जिस व्यक्ति का हम 'पप्पू' कहकर मजाक उड़ाते हैं वह एक गंभीर एवं दूरदर्शी नेता है। दूरदर्शिता उन्हें विरासत में मिली है। राहुल का मजाक उड़ना मतलब ताम्बे की चाहत में सोने को छोड़ देना है। इसमें हमारा ही नुकसान है।


कांग्रेस यदि राहुल गाँधी को दोबारा स्थापित करना चाहती है तो यह मौका उसे चूकना नहीं चाहिए। राहुल गाँधी की लीडरशिप में संदेह हो सकता है मगर उनकी विद्वता और दूरदर्शिता में नहीं। वह बेहद सुलझे हुए समझदार और काबिल व्यक्ति हैं।


सरकार यदि भारत का भला करना चाहती है तो कोई भी फ़ैसला लेने के पूर्व कम से कम एक बार राहुल गाँधी से सलाह लेनी चाहिए।


बाक़ी भाजपा चुनाव जीतती रहेगी। क्योंकि उसका चुनाव तंत्र बहुत मज़बूत है। वह चुनाव तब तक जीतेगी जब तक वो खुद न सोच लें कि "अब भारत को कांग्रेस के सिवा कोई नहीं चला सकता।"


ऐसा ही तो पंडित जी के साथ भी हुआ था।


शिवम् शुक्ला

 
 
 

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