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संत रविदास: समानता और न्याय के योद्धा

Updated: Feb 24

जाति के बंधनों को तोड़ने और समाज में बराबरी का संदेश देने वाले महान संत संत रविदास का पूरा जीवन संघर्ष और सामाजिक सुधार का प्रतीक था। उन्होंने भक्ति आंदोलन के माध्यम से ऊँच-नीच, छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई।

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"मन चंगा तो कठौती में गंगा" – उनका यह विचार बताता है कि सच्ची भक्ति मंदिरों में नहीं, बल्कि निर्मल हृदय में बसती है।

संत रविदास ने बेगमपुरा नामक ऐसे समाज का सपना देखा जहाँ न कोई ऊँच होगा, न नीच, न कोई दुखी होगा, न कोई शोषित।

उनके विचारों से प्रभावित होकर राजा-रानी तक उनके शिष्य बन गए, लेकिन समाज के कुछ लोग उनके खिलाफ षड्यंत्र रचते रहे। बावजूद इसके, उन्होंने अपने संघर्ष से लाखों लोगों को आत्मसम्मान और स्वतंत्रता का संदेश दिया।

संत रविदास ने न केवल भक्ति से समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया, बल्कि उन्होंने जातिवाद, धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास के खिलाफ अपने संघर्ष को मजबूती दी। उनके विचारों ने भारतीय समाज में जागरूकता और एकता का संचार किया। कबीर, गुरु नानक और अन्य संतों ने उनके विचारों को आगे बढ़ाया, जिससे एक नई सामाजिक चेतना का आरंभ हुआ।

संत रविदास का जीवन एक संघर्ष था, जो समाज के हर तबके के व्यक्ति को समान अधिकार, सम्मान और स्वतंत्रता दिलाने के लिए था। उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें सिखाती हैं कि जाति, धर्म या समाजिक स्थिति से ऊपर उठकर हमें समानता, प्रेम और एकता की भावना को फैलाना चाहिए। उनका संदेश आज भी हमें प्रेरित करता है कि हम किसी भी रूप में भेदभाव और सामाजिक असमानता के खिलाफ संघर्ष करें।


उनका जीवन यह सिखाता है कि अगर व्यक्ति के भीतर सच्चा प्रेम, भक्ति और समानता की भावना हो, तो उसे किसी भी प्रकार के सामाजिक दबाव या शोषण से डरने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अपने संघर्ष के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया कि समानता और भाईचारा ही असली धर्म है, और इसका पालन हर व्यक्ति को अपनी जाति या धर्म से ऊपर उठकर करना चाहिए।

आइए, इस संघर्ष को याद करें और समाज में समानता और प्रेम की भावना को बढ़ावा दें।

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