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Updated: Mar 30


मनरेगा घोटाले की जाँच में देरी: आरोपी अधिकारी को संरक्षण क्यों?


मध्य प्रदेश के भिंड जिले में जनपद पंचायत अटेर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री राजधर पटेल के खिलाफ मनरेगा मद से किए गए साढ़े तीन करोड़ रुपये के भुगतान में वित्तीय अनियमितताओं की शिकायत सामने आई थी। इस गंभीर आरोप की जाँच के लिए कलेक्टर द्वारा एक जाँच दल का गठन किया गया था, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर उनके विरुद्ध विभागीय जाँच के आदेश भी जारी कर दिए गए थे।

लेकिन, हैरानी की बात यह है कि इतने बड़े आरोपों के बावजूद श्री राजधर पटेल का अब तक न तो स्थानांतरण किया गया और न ही उनके विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई हुई। प्रशासनिक नियमों के अनुसार, किसी भी अधिकारी पर गंभीर वित्तीय अनियमितता के आरोप लगने के बाद उसकी निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित करने के लिए उसे तत्काल पद से हटाना आवश्यक होता है। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया, जिससे संदेह पैदा होता है कि कहीं आरोपी को उच्च स्तर पर कोई संरक्षण तो नहीं मिल रहा?


निष्पक्ष जाँच में बाधा

जब किसी अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, तो उसकी निष्पक्ष जाँच के लिए सबसे पहली जरूरत यह होती है कि उसे उस पद से हटाया जाए जहाँ से वह जाँच को प्रभावित कर सकता है। लेकिन इस मामले में जाँच प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद आरोपी को अब तक उसी पद पर बनाए रखा गया है, जिससे यह सवाल उठता है कि कहीं प्रशासनिक तंत्र स्वयं भ्रष्टाचार को संरक्षण देने में तो शामिल नहीं?

यह सवाल और भी गंभीर तब हो जाता है जब देखा जाए कि प्रदेश में इसी तरह के अन्य मामलों में त्वरित कार्रवाई हुई है, लेकिन यहाँ किसी वजह से जाँच की गति को धीमा किया जा रहा है। क्या इसका कारण राजनीतिक दबाव है या फिर प्रशासनिक ढिलाई?


कौन है उत्तरदायी?

इस मामले में यदि कोई सबसे बड़ा प्रश्न उठता है तो वह यह कि आखिर श्री राजधर पटेल को स्थानांतरित न करने और निष्पक्ष जाँच में बाधा डालने के लिए जिम्मेदार कौन है?

  1. क्या जिला प्रशासन जिम्मेदार है? – कलेक्टर के आदेश के बावजूद स्थानांतरण की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई, तो क्या यह प्रशासनिक लापरवाही है?

  2. क्या उच्च अधिकारी जिम्मेदार हैं? – जिन विभागीय अधिकारियों के अधीन यह जाँच चल रही है, क्या वे जानबूझकर देरी कर रहे हैं?

  3. क्या राजनीतिक हस्तक्षेप हो रहा है? – कहीं यह मामला राजनीतिक प्रभाव में तो नहीं दबाया जा रहा?


न्याय की राह में बाधाएँ

अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की नीतियाँ वाकई गंभीर हैं, तो इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? यह जनता के पैसे का मामला है और मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना में वित्तीय अनियमितता सीधे गरीब मजदूरों के हक पर चोट करती है। अगर इसी तरह भ्रष्टाचार के मामलों में संरक्षण दिया जाता रहा, तो प्रशासन पर जनता का विश्वास कैसे बना रहेगा?

सरकार को चाहिए कि वह तुरंत श्री राजधर पटेल का स्थानांतरण सुनिश्चित करे और जाँच प्रक्रिया को बिना किसी राजनीतिक व प्रशासनिक हस्तक्षेप के पूरा किया जाए। अन्यथा, यह संदेश जाएगा कि प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई केवल कागजों तक सीमित है, और जो लोग सत्ता व रसूखदार लोगों से जुड़े हैं, वे किसी भी तरह की कार्रवाई से बच सकते हैं।

आखिरकार, जब जनता सरकार को जवाबदेह बना सकती है, तो प्रशासनिक लापरवाही को नज़रअंदाज़ क्यों किया जाए?


लेखक - राहुल दुबे

संबंधित जानकारी हेतु - मध्य प्रदेश विधानसभा ,प्रश्नोत्तरी – सूची ,मार्च 2025 सत्र, मंगलवार दिनांक 11 मार्च 2025 , तार्किक प्रश्न उत्तर ।



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