सम्पूर्ण टीकाकारण का विकराल लक्ष्य और एक बिरला सुझाव
- रिशा वर्मा
- May 9, 2021
- 3 min read
इस लेख के मूल विचार राजेंद्र वर्मा (Rajendra Kumar Verma) के शोध से प्रभावित हैं।

बेहद अधिक प्रयासों और अकूत संसाधनों को लगा देने के संकल्प के बाद भी दुनिया सम्पूर्ण टीका करण के लक्ष्य को ४ वर्ष से पहले पूरा नहीं कर सकती है। बढ़ती आबादी, गरीब देशों में आबादी का घनत्व, वैश्वीकरण की वजह से बनी असीम परस्पर निर्भरता, गरीब देशों के युद्ध और बिगड़े हुए सामरिक रिश्ते व अन्य ऐसी कई वजह हैं जो पर्याप्त धन प्रबंधन के बावजूद टीकाकरण के लक्ष्य को अभेद रखेंगे।
बायो-इंफ़ोरमेटिक्स और कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के जानकार राजेंद्र वर्मा की गढ़ना के मुताबिक़ यदि आमिर देश टीकाकरण का लक्ष्य पूरा कर लेते हैं तो इस संक्रमण का घनत्व गरीब देशों में बढ़ता जाएगा। इससे वाइरस का आर॰एन॰ए अपना स्वरूप बदलने लगेगा और आमिर देश वापिस से संक्रमित होने लगेंगे। यानी की “एक भी व्यक्ति छूटा और सुरक्षा का चक्र टूटा” वाली मुसीबत लम्बे समय तक गले की हड्डी बनी रह सकती है। मौजूदा स्थिति पोलियो अभियान के समय की समस्या से बहोत भिन्न है। उस वक्त विश्व की आबादी, गरीब देशों प्रति व्यक्ति आबादी का भार, विश्व एक दूसरे पर निर्भरता, इंपोर्ट इक्स्पोर्ट आदि आज की तुलना में बेहद कम था। तब भी विश्व को पोलियो मुक्त करने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा था। अब जब कल्याणकारी परियोजनाएँ हाशिए पर हैं और सरकारें भी पूँजीपतियों के लाभकारी हितों के सामने नतमस्तक हैं ऐसे में बक़ौल राजेंद्र वर्मा सम्पूर्ण टीकाकरण का मौजूदा तरीक़ा लगभग असम्भव है।
हिसाब कीजिए यदि पूरी दुनिया के एक-एक इंसान को कम से कम दो-दो बार टीका लगाना है तो इस परियोजना का लक्ष्य कितना भीमकाय है? 51 करोड़ वर्ग किलोमीटर के भूभाग में तमाम सामाजिक और राजनीतिक अफ़वाहों, विरोधी देशों की आपसी रंजिस से लड़ते हुए ७ अरब लोगों को एक-एक कर के कम से कम दो बार टीका लगाना है। वो भी तब जब वाइरस अपनी मारक क्षमता में लगातार सुधार कर रहा हो। और ये भी की हर बदला रूप और अधिक आबादी को और अधिक गम्भीर रूप से संक्रमित कर रहा है। यानी लॉकडाउन और घर में एकांत रहने की मजबूरी से कामगार लोगों की कमी बनी रहेगी।
ऐसे में राजेंद्र ने टीकाकरण का एक वैकल्पिक सुझाओ दिया है। उनके मुताबिक़ रेडियो वेव के माध्यम से बड़ी आबादी को एक साथ टीका लगाया जा सकता है। ये केमिकल टीका नहीं है बल्कि रेडियो वेव्स के माध्यम से वाइरस के जीन को एडिट करना और हमारे शरीर में पर्याप्त मात्रा में मौजूद प्रतिरोधक शुक्राणुओं को इस वाइरस के जीन कोड से अवगत कराना जिससे अपना शरीर बिना संक्रमित हुए इस वाइरस के प्रति खुद अपनी प्रतिरोधक क्षमता बना ले।
जिनोमिक विषय में शोध रत भारत की संस्था एन॰सी॰बी॰आई ने गामा रे से बड़ी आबादी को एक साथ टीका करने के तरीक़ों पर बड़ा शोधपत्र प्रस्तुत किया है। आयन उत्सर्जित ऊर्जा से इलेक्ट्रॉन को हमारे डब्ल्यू॰बी॰सी को वाइरस से लड़ने के लिए तैयार करना और वाइरस की जीन को एडिट करना एक साथ बड़े पैमाने में सम्भव है। इससे एक बार में १०० से अधिक गाँवों को या ५ शहरों को एक बार में संक्रमण से मुक्त किया जा सकता है। यदि इस शोध के कारगर पहलुओं को देखें तो लोगों तक इस रेडीओ पदार्थ को पहचाने के कई तरीक़े हैं। रेडीओ टॉवर के आलवा मच्छरों और मक्खियों को भी डिस्ट्रिब्यूशन प्रणाली में उपयोग किया जा सकता है। कारगर और सम्भव दिखने वाले इस विकल्प को चुनना सरकारों के लिए आसान नहीं है। जीन एडिटिंग को लेकर जारी वैज्ञानिक नैतिकता पर बहस इस तरीक़े को लागू करने का आदेश लगभग नहीं देगी। सरकार अपनी जनता को जबरन टीका लगाने पर बाध्य भी नहीं कर सकती यह भी लगभग अनैतिक है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मानव विनाश के ख़तरे के बीच पनपती बहस, फ़ेकन्यूज़, अफ़वाह के अलावा सत्ता और जनता के बीच गिरता हुआ विश्वास इस मुश्किल का कोई कारगर तरीका ईजाद कर ले ऐसा दिखाई नहीं दे रहा।
ख़तरा इतना ही नहीं है, आमिर देश अपनी जमा पूँजी से और रणनीतिक छल से अपने राज्यों को इस महामारी के दौरान भी महफ़ूज़ कर लेंगे। भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, और अफ़्रीका की बड़ी आबादी वाले देश इस मुश्किल के सामने बिल्कुल असहाय और रिक्त हो जाएँगे। ये पूरी आबादी के सामने बहुत बढ़ा संकट है, लाक्डाउन या घर में छिप के बैठे रहने से और राजनीतिक छीटाकसी से इसका कोई हल निकलने वाला नहीं है। रेडीओ उत्सर्जित टीका करण या ऐसे ही किसी तकनीक पर संगठित शोध की आवश्यकता है। क्या आप राजेंद्र के शोध में अपना योगदान देंगे?
क्या भारत देश को इसपर स्वतंत्र विचार और शोध किया जाना चाहिए? आपके विचार आमंत्रित है।




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