हिटलर से लड़ने वाली एक १७ वर्ष की लड़की
- जितेंद्र राजाराम
- May 8, 2021
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Updated: May 8, 2021

एंनि फ़्रेंक के मरने के बाद उनके पिता ने उसकी पर्सनल डायरी को किताब की शक्ल दी थी। डायरी ओफ़ यंग गर्ल के नाम से करोड़ों प्रति और बीसियों भाषा में छपी ये किताब एक बालिका की जवान हो रहीं भावनाओं से शुरू होती है। इश्क़ और "फ़र्स्ट किस्स" के एहसास से गुजरती ये कहानी हिटलर के गैस चेम्बर में आज़ादी के लिए लड़ती हुई वीरांगना की लाश पर ख़त्म होती है।इस किताब का एक एक पन्ना रूह झकझोड़ देता है। इस किताब में गांधी के अहिंसावाद की ताक़त का ज़िक्र है, आज़ादी के मंसूबों की दलील है। आज़ाद आसमान को देखने की ललक है।ललक जिसकी टीस ऐनी को जान लेने मात्र से मन में रह-रह के उखड़ती है।
इसके विपरीत हिटलर के द्वारा लिखी आत्मकथा “मेरा संघर्ष” पढ़ने पर भी लगभग भाव विभोर हो ज़ाया जा सकता है। बखान आत्म मुग्ध हैं लेकिन वर्णन ऐसा है जैसे एक नेता अपने देश प्रेम के लिए सब कुछ छोड़ देने की क़समें खाता है, कैसे वो गरीब, भिक से बिलखता हुआ बालक जर्मनी राष्ट्र को उसका अभिमान वापिस दिलाने के सपने को साकार करने की होड़ में पूरे यूरोप को ही नहीं पूरे विश्व को युद्ध की आग में झोंक देता है।दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान और बाद में जर्मनी, इसराएल, फ़िलिस्तीन की ज़मीन में कुछ भी घटा वो अकल्पनीय है। इंसान के हैवान हो जाने और फिर वापिस इंसान हो जाने के बीच की दूरी को बार-बार तय करते जर्मन, यहूदी और फ़िलिस्तीनी लोगों ने जन हत्या को ना जाने कितने पहलुओं आदर्श साबित किया है। इस बर्बरता को कभी राष्ट्र, कभी धर्म और कभी पूँजी के नाम पर जयज ठहराने वाले अक्सर संख्या में ज़्यादा, संसाधन से परिपूर्ण और सत्ता में काफ़ी दख़ल रखते हैं। लेकिन क़िला कितना भी अभेद हो, दरार ज़रूर पड़ती है। इतिहास अक्सर किलों में दरार पैदा करने वालों को भूल जाता है।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यहूदी जब नाज़ियों को पकड़-पकड़ कर मुक़दमे कर रहे थे तब नाज़ी सरकार में एक-एक यहूदी को मार डालने की स्कीम बनाने वाले हिटलर का आटो अडोल्फ़ आइखमन का मुक़दमा भी रोंगटे खड़े कर देता है। “होलोकास्ट- ए फ़ाइनल सलूशन टू जूइश क्वेस्चन” के निर्माता ने क़रीबन ५ लाख नवजात बच्चों के क़त्ल के सीधे आदेश दिए थे। हिटलर के मरने के बाद नाज़ी प्रेमी चर्च की मदद से अर्जेंटीना में जाकर छुपने और मर्सिडिज कम्पनी में एक मज़दूर की तरह काम करने वाले इस हत्यारे को जब इसराइली एजेंट साइमन विजेंटल पकड़ने के फ़िराक़ में उस पर नज़र रख रहे थे तब अडोल्फ़ अपने पोते को गोद में खिलाते हुए लोरियाँ सुना रहा था। जिस एगेंट ने उसकी उसके पोते के साथ ये तस्वीर खिंची थी, उसके तीनों भांजे जो पाँच वर्ष से लेकर ६ महीने की उम्र के उन सब को बंकर में डालकर गोलियों से भून डालने का आदेश सीधे आइखमन ने ही दिया था। अपनी दलील में आइख़्मन ने कभी अपनी गलती नहीं स्वीकारी, ये कहकर की वो सिर्फ़ आदेशों का पालन कर रहा था और वो उन हत्याओं का क़ुसूरवार नहीं है, वो विदेशी हस्तआक्षेप की गुहार लगाता रहा। अंत में उसे फाँसी वाली शांतिभारी मौत नसीब हुई। जो किसी भी सूरत में न्यायसंगत नहीं लगती है।
हिटलर खुद जिस ६ साल की यहूदी बच्ची बरनिलहे नियंदु को अपना प्रिय दोस्त कहता रहा, होलोकॉस्ट के समय उसने उसकी मदद भी नहीं की। इतने बड़े तानाशाह जिसको हरा पाना बड़ी-बड़ी सेनाओं को भी नामुमकिन लग रहा था, उससे एक पिद्दी सी लड़की ने अपनी हैसियत बराबर ही सही पर कमाल की लड़ाई लड़ रही थी। सेल्मा वेन डी पेरिए नामकी इस महिला ने हाल ही अपनी दास्तान को एक पुस्तक में दर्ज किया है। उस वक्त १७ वर्ष की उम्र में ये लड़की क़ैद खानों में नाज़ी फ़ौज के लिए गैस से बचने के लिए मिलिट्री मास्क तैयार करने की मज़दूरी करती थी। वो अपनी साथी मज़दूरों के साथ उन मास्क्स के स्क्रू को ढीला छोड़ देते थे ताकि गैस के हमले नाज़ी सैनिक अपनी हिफ़ाज़त न कर सके। होलोकास्ट के समय दर्जनों नाज़ी सैनिक इसी मास्क्स की वजह से खुद मारे गए थे। सेम्मा अपनी याददाश्त में लिखतीं है, ये बिल्कुल माएने नहीं रखता कि आप जीतेंगे या नहीं। मायने ये रखता है कि एक बुज़दिल ज़िंदगी और बहादुर मौत के बीच के धागे भर के फ़र्क़ को मिटाने में आपको कितनी हिम्मत जुटानी पड़ती है।
आज से कोई १२ हज़ार साल पहले जब सभ्यता विकसित हो रही थी, उस जमाने की कल्पना पर आधारित एक फ़िल्म के आख़िरी पल याद आते हैं। इस कमाल की फ़िल्म जिसमें सात पर्दों के पीछे छुपे एक बूढ़े इंसान को देवता बताकर उसका दर दिखाकर हज़ारों लोगों को ग़ुलाम बनाने हिंसक कोशिस की जाती है। १०००० बीसी नामक की इस फ़िल्म में एक अदना सा लड़का सात पर्दों में छिपे उस बूढ़े को अपने भाले से गिरा डेटा है। और चींख के कहता है “ही इज नॉट ए गॉड”। इस दुनिया में जब भी कोई तानाशाह ख़ुदा हो जाने की मद में लोगों की जान से खिलवाड़ करने लगता है तो उसे देख कर मुझे इस फ़िल्म का यही सीन याद आता है। १७ वर्षीय सेम्मा आज ८० साल की हो चुकी हैं, लेकिन उनकी लड़ाई मुझे हार उस खुदाई क़द के बुज़दिल इंसान से लड़ने की नसीहत देता है जो खुद को अजय समझने की मद में जी रहा है।




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