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जाने उत्तर कोरिया और साउथ कोरिया के बीच अलगाव क्यों हैं?

कोरिया का इतिहास

कोरिया का इतिहास भारत के इतिहास की तरह ही प्राचीन है। यह लंबा और अशांत इतिहास काफी हद तक बड़ी शक्तियों के बीच उसकी भौगोलिक स्थिति से परिभाषित होता है। जापान और चीन के बीच संतुलन खोजने के संघर्ष ने बार-बार रस्साकशी की स्थिति पैदा की जिसने आंतरिक विभाजन को सक्षम किया और कोरियाई प्रायद्वीप में विदेशी हस्तक्षेप को आमंत्रित किया।

प्रभाव-क्षेत्र क्या होता है?

एक क्षेत्रीय क्षेत्र जिसके भीतर राजनीतिक प्रभाव या एक राष्ट्र के हितों को कमोबेश सर्वोपरि माना जाता है।


आज की तारीख में कोरिया के दो हिस्से हैँ : उत्तर कोरिया यानि नॉर्थ कोरिया और दक्षिण कोरिया यानि साउथ कोरिया।

ऐसा माना जाता है की कोरिया 7 सदी से बसा हुआ है । कोरिया का इतिहास न सिर्फ युद्ध के लिए प्रसिद्ध है बल्कि काल्पनिक जानवर, और काल्पनिक जीव जैसे चुड़ैलों, भूत, कल्पित बौने, और जादूगर जैसी काफी रोचक लोक कहानियों और मिथक कथाओं के लिए जाना जाता है।

यहाँ युद्धों और इतिहास का मुख्य कारण प्रभाव-क्षेत्र है। बाहरी देशों का हस्तक्षेप यहाँ ज़ादा रहा है।


कोई भी राज्य या देश उसके अंदर बसे हुए शहरों से होता है। युद्ध और विभाजन की शुरुवात से पहले कोरिया के तीन मुख्य भौगोलिक-राजनीतिक हिस्सों में बटा हुआ था, बुयो ,ओक्जेओ, गोजोसअं।


तीन मुख्य क्षेत्रों में गोजोसअं सबसे अधिक प्रचलित था और कहीं न कहीं चीन से काफी करीब था। चीनी फौज ने कोरिया पर आक्रमण किया और गोजोसअं पर अपना राज कायम कर लिया। इसके बाद कोरिया की खुफिया फौज जिसे राइटीयस फोर्सेस भी कहा जाता है, उसने चीनी फौज को कोरिया से बाहर निकाल फेंका और उसके बाद गुगोरएओ को स्थापित किया गया।


इसके बाद कोरिया में एक समानता संगठन और संबंध उतत्पन्न होने लगे, और “द हान” सगोत्रता उभर के ऊपर आई।

इसके अंदर तीन भाग में लोग बंट गए, पहला “मा हान” दूसरा “बयो हान” और तीसरा “जिन हान” ।

जिन हान समानता से बने दो प्रमुख शहर थे जो उभर के सामने आए, बेकजा और शीला।


अब भौगोलिक चित्रण कुछ इस प्रकार था की गोगुरियू, बोयू, और ओकेजों की जगह बेकजा और शीला ले चुकी थी।

युद्ध के कारण परिसीमन बार बार होता रहा, भोगोलिक-राजनैतिक माइयने बदलते रहे।


बेकज और गोगुरएओ में महाद्वीप होने का फायदा शीला दोनों तरफ से उठता रहा, शीला ने अपने राजनीतज्ञ स्वभाव से व्यावसायिक विस्तार किया जिसके बाद शीला शक्तिशाली हो गया।

ये व्यावसायिक विस्तार गोगुरएओ और बेकजा में भी चलता रहा।


चीन को दूसरी लड़ाइयों की तरफ व्यस्त देख गॉगऊरएओ ने चीनी चौकियों पर धावा बोल दिया और जीत हासिल कर ली।

चीन ने इस चाल के जवाब में शीला से मैत्री करना सही समझा क्योंकि शीला तीनों में से सबसे कमजोर कड़ी था।

शीला को भोगोलिक विस्तार के लिए राज़ी करना चीन के लिए कोई मुश्किल काम न था।

शीला ने चीन की मदद से कोरिया पर अपना राज कायम कर लिया।


इसके बाद शीला का राज काम हो गया और चीन हुकूमत शुरू हो गई। आगे जाके वह हिस्सा “प्रटेक्टरिट जनरल टू पैसफाइ द नॉर्थ” के अनाम से जाना गया।


कुछ थोड़ी ही दूरी पर खानाबदोश उत्तर में ‘बलहे” की एक आर्मी तैयार हुई क्योंकि चीन की आर्मी ने कोरिया के मूल निवासियों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया था। धीरे-धीरे शीला जो की यूनीफाइएड शीला बन चुका था उसका नियंत्रण गोगुरएओ और बेकजा से कम हो गया।


शीला का जोर कम होते हुए देख के “किंग ताओ जो” ने गोरएओ और गॉगउरेप पुनः एकीकृत करने के लिए प्रायद्वीप की 29 राजकुमारियों से विवाह किया । कुछ अच्छे समय बाद मोनगोल को इसकी भनक लगी तो वह कोरिया पर अपना राज जमाने के लिए युद्ध करने पहुंचे। पर न्याय प्रयाण फौज की मौजूदगी से ऐसा संभव न हो सका । और नए राजा “ए-सेऔंग-ये” ने लोकप्रियता, स्वीकृति और अपनापन के चाह में पुनः जोसों शहर को स्थापित किया गया। ए-सेऔंग-ये के विरोध किया और कोरिया पर अपना हक जमा लिया।


जोसों ने चीन के लिए करदाता बनना स्वीकार किया। उधर जापान भी अपनी कोशिशों में लगा हुआ था, जापान समुराई ने तीन द्वीपों को साथ में जोड़ने के बाद कोरिया पर आक्रमण करने की कोशिश की।

पर कोरियन फौज की नई तकनीकों और हथियारों का सामना न कर सकी।

जोसों 19वी सदी में बाँट दिया गया। चिंग राजवंश और जापान समराज्य ने मिलके कोरिया को इस्तेमाल किया और उस पर अपना हक जमाने की कोशिश की और कमियाब भी हुए। जापान ने कोरिया को अपने अंतर्गत ले लिया, यह एक अन्य प्रभाव क्षेत्र था। इस प्रभाव क्षेत्र में सिर्फ मौत और मुसीबत थी। कोरियाई लोगों को बहुत ज़ादा दबाया गया।

उनसे उनकी भाषा छीन ली गई, औरतों के साथ ज्यादती और सेविका, दासी जैसा व्यवहार किया गया।


दस लाख से ज़ादा कोरियाई लोगों को युद्ध में अपनी भूमिका निभाने के लिए जापान भेज दिया गया। सोवीएट यूनियन और यूनाइटेड स्टेट्स का भी ध्यान कोरिया की तरफ था। कोरिया के हालात देखते हुए यूएन के पर्यवेक्षण में यूएस और सोवीएट यूनियन ने बिना कोरियन लोगों या मत का हस्तक्षेप लिए ऐसा सोचा कि कोरिया को भागों में बाँट देना चाहिए जिसे 38वा पैरलेल भी कहा जाता है।


यहाँ कोरिया के दो भाग हो चुके थे : उत्तरी कोरिया और दक्षिण कोरिया


उत्तरी कोरिया सोवीएट यूनियन के सिद्धांतों पर काम कर रहा था और उसे हर्मिट किंगडम यानि साधु साम्राज्य, दूसरों का हस्तक्षेप पसंद न करने वाला देश कहा जाने लगा। जबकि दक्षिणी कोरिया में यूएन की योजनप्रणाली के तहत मुक्त और निश्चल चुनाव हो रहे थे, सरकार लोकतंत्र में विश्वास रख रही थी।


लोग खुशियां मना रहे थे की कोरिया फिर से संयुक्त कोरिया हो जाएगा और सभी भाई बंधु पहले जैसे रह सकेंगे पर कुछ ही समय में भाईचारे की भावना विवाद और तक्रार में बदल गई। सोवीएट यूनियन और यूएस ने कोरिया के दोनों भागों में अपने अनुकूल मंत्र/नेता/लीडर नियुक्त किए।


उत्तारू कोरिया और दक्षिणी कोरिया एक दूसरे से विभिन्न दिखने की कोशिश में व्यस्त रहे । किम-ईल-सिंग उत्तरी कोरिया के प्रतिनिधि थे और सींगमन-ऋ दक्षिणी कोरिया के प्रतिनिधि थे।

दोनों ही नेता बहुत अलग मतों में विश्वास करते थे उत्तरी कोरिया में मिलिटरी प्रशासन चल रहा था, जिसके चलते

उत्तरी कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया।


अभी तक मुद्दा दूसरे देशों के प्रभाव से कोरिया में युद्ध चलने का था, लेकिन दोनों विभाजित क्षेत्रों के लड़ने से अब यह मुद्दा आपसी झड़प का हो गया था।

उत्तरी कोरिया सफल हुआ लेकिन बाकी राज्य जो कोरिया पर नजर जमाए हुए थे, यूएस, यूएन, और दक्षिण कोरिया ने आपसी मत बनाकर उत्तरी कोरिया को मुंह-तोड़ जवाब दिया।


विभाजन के बाद नॉर्थ कोरिया ने साउथ कोरिया पर हमला बोल कर फिर परिसीमन किया और जवाबी युद्ध के बाद सीमाएँ पहले जैसी हो गई यानि 38th पैरलेल।


कोरियाई युद्ध : कोरियाई युद्ध, डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (उत्तर कोरिया) और कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया) के बीच संघर्ष जिसमें कम से कम 2.5 मिलियन लोगों की जान चली गई। युद्ध जून 1950 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया जब सोवियत संघ द्वारा आपूर्ति और सलाह देने वाले उत्तर कोरिया ने दक्षिण पर आक्रमण किया। संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ प्रमुख भागीदार के रूप में, दक्षिण कोरियाई लोगों के पक्ष में युद्ध में शामिल हो गया, और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना उत्तर कोरिया की सहायता के लिए आया। दोनों पक्षों में एक लाख से अधिक युद्ध हताहत होने के बाद, जुलाई 1953 में लड़ाई समाप्त हो गई और कोरिया अभी भी दो शत्रुतापूर्ण राज्यों में विभाजित हो गया। १९५४ में वार्ताओं ने कोई और समझौता नहीं किया, और तब से अग्रिम पंक्ति को उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच वास्तविक सीमा के रूप में स्वीकार किया गया है।



आज भी कुछ मुद्दों पर उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया सहमत नहीं हैं। आज भी चीन का कहना है की कोरिया का गुगोरएओ उनका है और जापान का कहना है की सहिल यानि सोल उनका है क्यूंकी कोरिया का इतिहास इतना व्यापक है इसीलिए काफी बातों के बाद नॉर्थ कोरिया और साउथ कोरिया को अलग अलग देश हैं, जैसे भारत और पाकिस्तान।


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