भारत में चुनाव और स्थानीय स्वशासन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व:
- ज्योत्सना वर्मा
- Apr 2
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भारत में स्थानीय स्व-शासन में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और चुनावों में उनकी भागीदारी पर केंद्रित है। यह बताता है कि भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी ऐतिहासिक रूप से सीमित रही है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। हालांकि, 1992 में 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के बाद महिलाओं को पंचायत राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में 33% आरक्षण मिला, जिससे उनकी भागीदारी में वृद्धि हुई।
महिला सशक्तिकरण 21वीं सदी के प्रमुख मुद्दों में से एक बन गया है। महिलाएं दुनिया की लगभग आधी आबादी हैं, फिर भी सामाजिक और राजनीतिक रूप से वे वंचित बनी रहती हैं। महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने 1992 में संविधान संशोधन के माध्यम से पंचायतों में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित कीं। इसके परिणामस्वरूप, लाखों महिलाएं पंचायत चुनावों में निर्वाचित होने लगीं। 2006 में, लगभग 10 लाख महिलाओं ने विभिन्न स्तरों की पंचायतों में चुनाव जीते।
इतिहास की दृष्टि से देखा जाए तो स्वतंत्रता से पूर्व महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बहुत सीमित थी। हालांकि, 1917 में "वीमेन्स इंडिया एसोसिएशन," 1925 में "नेशनल काउंसिल ऑफ इंडियन वीमेन" और 1927 में "ऑल इंडिया वीमेन्स कॉन्फ्रेंस" जैसी संस्थाओं की स्थापना हुई, जिनका उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करना था। भारतीय संविधान निर्माण के दौरान महिलाओं के लिए कोई विशेष आरक्षण नहीं दिया गया क्योंकि संविधान निर्माताओं को विश्वास था कि लोकतंत्र में सभी को समान अवसर मिलेंगे। लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं हुआ।
स्वतंत्रता के बाद, महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी सीमित रही, लेकिन 1980 के दशक में महिलाओं की जागरूकता बढ़ी और राजनीतिक दलों ने महिलाओं को एक महत्वपूर्ण वर्ग के रूप में मान्यता दी। 1992 में महिलाओं के लिए आरक्षण लागू होने के बाद, संविधान में अनुच्छेद 243D और 243T जोड़े गए, जिनके तहत पंचायत और नगर निकाय चुनावों में महिलाओं के लिए कम से कम एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गईं।
हालांकि, महिला सशक्तिकरण के इस प्रयास में कई चुनौतियाँ भी सामने आईं। "प्रधान पति" संस्कृति, जहां निर्वाचित महिलाएं अपने पति या पुरुष रिश्तेदारों के निर्देशों पर कार्य करती हैं, एक बड़ी समस्या बनी हुई है। कई महिलाओं में राजनीतिक जागरूकता की कमी है और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में प्रभावी भागीदारी के लिए उचित प्रशिक्षण नहीं मिलता। इसके अलावा, सामाजिक और आर्थिक बाधाएं, पुरुष प्रधान मानसिकता और राजनीतिक नेटवर्क की अनुपस्थिति भी महिलाओं की राजनीतिक सफलता में बाधा डालती हैं।
बिहार पहला राज्य था जिसने 2005 में पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू किया। इसके बाद, राजस्थान और अन्य 20 राज्यों ने भी पंचायत राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू किया। इससे महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

हालांकि, केवल आरक्षण देना पर्याप्त नहीं है। कई बार महिलाएं निर्वाचित तो हो जाती हैं, लेकिन वे स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले पातीं। इसके पीछे शिक्षा की कमी और सामाजिक रूढ़ियाँ जिम्मेदार हैं। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए न केवल राजनीतिक और आर्थिक अवसरों की आवश्यकता है, बल्कि उन्हें निर्णय लेने की स्वतंत्रता भी मिलनी चाहिए।
ग्रामीण क्षेत्रों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की उपस्थिति विकास में लैंगिक समावेशन और वंचित वर्गों की मुक्ति के लिए एक बड़ा अवसर है। लेकिन यह भी सच है कि आरक्षण से महिलाएँ राजनीति में प्रवेश तो कर रही हैं, लेकिन प्रभावी नेतृत्व और सक्रिय भागीदारी की गारंटी नहीं मिल रही। केवल शिक्षा से महिलाओं का सशक्तिकरण संभव नहीं है, क्योंकि शिक्षित होने के बावजूद वे सत्ता संरचना से बाहर रहती हैं। आरक्षण और शिक्षा के बीच गहरा संबंध है, लेकिन दोनों ही अकेले महिलाओं को पूरी तरह सशक्त करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। कई बार आरक्षण और संस्थागत समर्थन से महिलाएँ राजनीतिक और आर्थिक शक्ति तक पहुँचती तो हैं, लेकिन अज्ञानता और कौशल की कमी के कारण वे अपनी शक्ति का प्रभावी उपयोग नहीं कर पातीं। कुछ मामलों में शिक्षित महिलाएँ भी सत्ता की राजनीति में प्रवेश नहीं कर पातीं, क्योंकि वे प्रभावी ढंग से भाग नहीं ले पातीं।
केवल राजनीतिक और आर्थिक अवसर महिलाओं को पूरी तरह सशक्त नहीं कर सकते, क्योंकि उनके अर्जित धन और निर्णयों को अक्सर पुरुष नियंत्रित करते हैं। कई पंचायतों में महिला नेता पुरुषों के विचारों की प्रतिनिधि मात्र बनी रहती हैं। महिला आरक्षण ने आत्मविश्वास बढ़ाने और महिलाओं की सार्वजनिक गतिशीलता में सुधार करने में मदद की है, लेकिन यह संपूर्ण सशक्तिकरण के लिए पर्याप्त नहीं है। महिलाओं की वास्तविक राजनीतिक भागीदारी और नेतृत्व क्षमता को बढ़ाने के लिए व्यापक और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।
लेखक :सुदेशना शर्मा
अनुवादक : ज्योत्सना वर्मा
उद्दरण: द इंटरनेशनल जर्नल ऑफ टेक्नोलॉजी, नॉलेज एंड सोसाइटी
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